पालतू तोते को किसी ने पिंजरे समेत एक संत के आश्रम में पहुँचा दिया। संत ने उसे मोक्ष का मार्ग बताया और नया वाक्य याद कराया, पिंजरा छोड़ो, ऊँचे उड़ो। तोते ने ये शब्द रट लिए। एक दिन पिंजरा खुला रह गया। तोता खिड़की से बाहर सिर चमकाता और रटे हुए शब्दों को बोलता−पिंजरा छोड़ो, ऊँचे उड़ो।
आश्रमवासी इस कुतूहल को देख रहे थे। द्वार खुला है, उड़ने में कोई रोक नहीं, मंत्र भी याद है, फिर यह उड़ता क्यों नहीं? अपितु भीड़ को देखकर पिंजरे के कोने में क्यों जा छिपता है?
हँसते आश्रमवासियों के कुतूहल का समाधान करते हुए संत ने कहा, हममें से भी तो अनेक ऐसी ही तोतारटंत करने वाले हैं। भक्ति का द्वार खुला होने पर भी बंधन से निकलने का प्रयास नहीं करते, उलटे धार्मिकता का भ्रम फैलाते रहते हैं।