रावण का पराभव हुआ और विभीषण का राज्याभिषेक। राजा विभीषण भगवान राम के समक्ष कर्त्तव्यपालन संबंधी निर्देश प्राप्त करने की जिज्ञासा से खड़े हुए।
भगवान राम बोले, अपने बड़े भाई पंडितराज रावण के ज्ञान−विज्ञान का रक्षण और विकास करना, पर अपना चिंतनक्रम हमारे भक्तों जैसा आदर्शनिष्ठ तथा व्यवस्थित रखना।
विभीषण ने जानना चाहा कि रावण से चिंतन स्तर का क्या भूल हुई, तो करुणानिधि बोले, उसने सत् पुरुषों का व्यवस्थित चिंतन छोड़ दिया, लोलुपों का अस्त−व्यस्त क्रम अपनाया, इसलिए अपने ज्ञान का ठोस लाभ समाज को न दे सका। आदर्शनिष्ठ चिंतन छोड़कर, संकीर्ण स्वार्थगत चिंतन ने उसे हीन कर्मों में लगा दिया और दुर्गति करा दी। उसकी रुचि के और संसार की आवश्यकता के ढेरों श्रेष्ठ कार्य प्रतीक्षा में ही रखे रह गए।