शंभूनाथ अपने पिता के इकलौते बेटे थे। उनने क्राँतिकारी दल में जाने की जब अपने पिता से आज्ञा माँगी तो उनने इतना ही कहा कि समझ−सोचकर कदम बढ़ाना। खतरों को पहले से ही ध्यान में रखो। उनके लायक हिम्मत हो, तो ही जाना। बीच में से लौटकर हँसी मत कराना। साथ ही उनने कहा, बाहर से पैसा लेने से पहले घर में जो कुछ है, उसे खत्म कर लो, ताकि कोई यह न कहे कि अपना बचाए फिरते हैं और दूसरों पर हाथ पसारते हैं। घर में जो पूँजी थी, पिता ने वह खुशी−खुशी दे दी। जब बिलकुल खाली हाथ हो गए, तब पार्टी के काम के लिए दूसरे तरीकों से धन प्राप्त करने लगे।
शंभूनाथ पर कई मुकदमे चले। हाईकोर्ट ने उन्हें आजीवन कैद की सजा दी। जेल में नि बंदियों से उनका संपर्क रहा, उन्हें भी क्राँतिकारी बनाने में वे लगे रहे।