विवेकशीलों को पाने में कठिनाई (Kahani)

January 2003

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जरथुस्त्र ने विद्वानों के कठिन−से−कठिन प्रश्नों के समाधान बड़े अच्छे ढंग से किए। वे सभी अत्यंत प्रभावित हुए। शहंशाह ने कहा, ऐसे उत्तर परमात्मज्ञान में संपन्न व्यक्ति ही दे सकता है।

बादशाह ने उन्हें सम्मानित किया और कहा, आप कोई चमत्कार दिखाएँ, हम सब आपके अनुयायी बनेंगे। जरथुस्त्र ने हाथ की पुस्तक दिखाते हुए कहा, यह अवेस्ता (ईश्वरीय ज्ञान) ही सबसे बड़ा चमत्कार है, जो लाखों को नई दृष्टि देता है। इसके अलावा लोगों की आँखों में चकाचौंध पैदा करने वाले किसी चमत्कार के लिए ईश्वरीय धर्म के कोई स्थान नहीं है। बादशाह ने अपनी बालबुद्धि के लिए क्षमा माँगी एवं औचित्य को वरीयता देते हुए जरथुस्त्र को गुरु रूप में स्वीकार किया।

विष्णु भगवान ने अपनी सर्वोत्तम कृति पृथ्वीनिवासी मनुष्यों का हाल−चाल देखने की इच्छा प्रकट की। लक्ष्मी जी ने मना किया और कहा, मनुष्य बड़े धूर्त हो गए हैं। यह समाचार मुझे नारद से मिल चुका है।

लक्ष्मी जी के मना करने पर भी जब विष्णु भगवान पृथ्वी पर जाने लगे, तो लक्ष्मी ने कहा, मनुष्य धूर्त न निकले, तो ही लौटकर आना, नहीं तो उन्हीं के बीच रहना। विष्णु तुनककर चल दिए।

धरतीनिवासी मनुष्यों को जब विष्णु के आगमन का समाचार मिला, तो वे ठट्ठ के ठठ्ठ जमा हो गए। विष्णु द्वारा पूछे गए धर्म−कर्म के पालन का प्रश्न उपेक्षा में डालकर उनसे मनोकामना पूर्ति का आग्रह करने लगे।

विष्णु को उनकी लोभ−लिप्सा पर क्रोध आया। वे उठकर बदरीनाथ पर्वत पर जा छिपे। आगमन का समाचार मिला, तो लोग हजारों की संख्या में वहाँ भी जा पहुँचे। चर्चा चली। यहाँ भी पिछले स्थान की पुनरावृत्ति हुई। लोगों ने विविध मनोकामनाओं की पूर्ति का आग्रह किया।

विष्णु दुखी होकर वहाँ से भी चल पड़े और समुद्र के बीच बसी द्वारिका में आसन जमाया। लोगों ने उन्हें वहाँ भी खोज लिया और वही कामनापूर्ति के लिए पहले जैसी हठ ठानी।

विष्णु अदृश्य हो गए, पर लज्जावश लक्ष्मी जी के पास न गए। असमंजस में पड़े विष्णु से नारद ने कारण पूछा, तो विष्णु ने अपनी पीड़ा सुनाई, यहाँ लोग कर्त्तव्य की अपेक्षा करते हैं और लालच की रट लगाए हैं। कोई ऐसा स्थान बताओ, जहाँ मैं धरती पर शाँतिपूर्वक रह सकूँ।

नारद ने कान में कहा, आप मनुष्यों के हृदय में छिप जाइए। वे बहिर्मुखी हैं। बाहर की आपको ढूंढ़ेंगे, भीतर दृष्टि ही नहीं जाएगी। ढर्रे की चाल चलने वाले आप तक पहुँचेंगे ही नहीं तथा आत्मदर्शी, विवेकशीलों को पाने में कठिनाई भी नहीं होगी।


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