कृत्रिम जीवन त्यागें, सूर्य के प्रकाश की ओर चलें

January 2003

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प्रकाश भी चिकित्सा की एक विधि है। सूर्य किरणों एवं अन्य अनुकूल रश्मियों के माध्यम से किया गया उपचार प्रकाश उपचार कहलाता है। इसे फोटोथेरेपी भी कहा जाता है। जो रोग प्राकृतिक जीवन के अभाव में कृत्रिमता के आँचल में पलते-बढ़ते हैं, ऐसे रोगों को ‘सिजनल एफेक्टिव डिसआर्डर ‘ कहते हैं। फोटोथेरेपी द्वारा इनकी सफल चिकित्सा की जाती हैं। यह चिकित्सा पद्धति व्यक्ति को सूर्य के प्रकाश अर्थात् प्राकृतिक जीवन शैली अपनाने के लिए बल देती है। यही इसका मुख्य आधार है।

मेसाचुसेट्स के डॉ. एनी जेन के अनुसार जबसे मानव प्राकृतिक जीवन से विमुख होकर भौतिकता के कृत्रिम परिवेश में ढलने लगा है, तभी से उसके शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट आयी है। वह विभिन्न प्रकार के रोगों का शिकार होने लगा है क्योंकि आज का आधुनिक जीवन बहुमञ्जिली इमारतों, अल्ट्रा मॉडर्न दफ्तरों तथा वातानुकूलित कारों में सिमट कर रह गया है। आगे वह स्पष्ट करते हैं कि इसमें तथाकथित सामाजिक प्रतिष्ठ तो मिलती है परन्तु जीवन की सहजता समाप्त हो जाती है। व्यक्ति प्रकृति से दूर चला जाता है, उससे कट जाता है। डॉ. जोसेफ ने इस कृत्रिम परिवेश को ‘सिजनल एफेक्टिव डिसआर्डर ‘ नामक रोग का मुख्य कारण माना है। लाइट थेरेपी इस रोग का सफल उपचार है।

सूर्य विज्ञान के प्रणेता विशुद्धानन्द ने सूर्य को प्राणदाता कहा है। हमारा जीवन और पृथ्वी इसी के माध्यम से संचालित एवं नियंत्रित हो रहे हैं। सूर्य अपने प्रकाश के माध्यम से मानव शरीर का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से पोषण करता है। प्रकृति की यह अद्भुत व्यवस्था है, जो किसी अन्य माध्यम से पूर्ण नहीं हो पाती है। सूर्य प्रकाश में प्रकाश की इतनी ही मात्रा होती है जिसे शरीर ग्रहण कर सके। भरी दुपहरी में सूर्य के प्रकाश की तीव्रता 100,000 लक्स होती है। लक्स प्रकाश को मापने की एक इकाई है। जाड़े की दुपहरी में इसकी तीव्रता 10,000 लक्स प्रकाश होती है।

जाड़े की सुबह के अलावा सूर्योदय होते ही हमें 10,000 लक्स प्रकाश मिलने लगता है। इतने ही प्रकाश को ब्राइट लाइट थेरेपी में प्रयोग किया जाता है जिससे तमाम तरह के रोगों को ठीक किया जा सके। अन्वेषणकर्त्ता जान बेस्ट के अनुसार व्यक्ति यदि प्रातःकाल उठकर सूर्य प्रकाश के संपर्क-सान्निध्य में आ सके तो उसे किसी प्रकार की लाइट थेरेपी की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। प्रातःकालीन सूर्य प्रकाश से वह इतनी ऊर्जा ग्रहण कर सकता है जितना कि उसे आवश्यकता है,और इस तरह शरीर की प्राकृतिक रूप से आवश्यकता की पूर्ति होती रहने से वह सदा निरोग एवं स्वस्थ रह सकता है।

एक दफ्तर को अच्छे से प्रकाशित करने के लिए 500 से 1000 लक्स प्रकाश की जरूरत पड़ती है। सामान्यतया घरों में 300 से 500 लक्स प्रकाश होता है। बेडरूम में 100 लक्स प्रकाश का होना ठीक माना जाता है। खिड़कियों के माध्यम से प्रकाश की व्यवस्था की जा सके तो घर के परिवेश को भी प्राकृतिक बनाया जा सकता है। इससे शरीर का जैविक चक्र (बॉडी क्लॉक) एवं मेलेटोनीन हार्मोन का नियंत्रण सामान्य एवं शरीर के अनुकूल बने रहता हैं। कृत्रिम प्रकाश से इसकी अनुकूलता समाप्त हो जाती है और शरीर में रोगों का आक्रमण होने लगता है। इसी कारण रात्रिकालीन ड्यूटी करने वाले धीमी रोशनी में रहने वाले व्यक्तियों में भय, थकान, उदासी, त्वचा सम्बन्धी रोग, अनिद्रा तथा प्रतिरोधी क्षमता में कमी आदि की समस्याएँ पायी जाती हैं। आर्कटिक क्षेत्र में प्रकाश का स्तर 50 लक्स होता है और वहाँ भी इसी तरह की परेशानी देखी गयी है।

होलिस्टिक ऑन लाइन नामक वेबसाइट पर प्रकाशित ‘लाइट थेरेपी’ नामक एक लेख के अनुसार प्राकृतिक प्रकाश की उपयोगिता एवं उपादेयता अपने आप में महत्त्वपूर्ण है। कृत्रिम प्रकाश में सारी विशेषताएँ नहीं होती हैं। इस शोध लेख के अनुसार घरों, दफ्तरों या अन्य किसी भी स्थान पर पर्याप्त प्रकाश की व्यवस्था करने में एक कठिनाई आ सकती है। क्योंकि जैसे-जैसे प्रकाश की तीव्रता बढ़ती है उसी अनुपात में अल्ट्रावायलेट किरणों के बढ़ने का खतरा भी उत्पन्न हो जाता है। इन किरणों से आँखों में जलन, आँखों की अन्य बीमारी तथा त्वचा कैन्सर जैसे रोग पनपते हैं। अतः लाइट थेरेपी का मुख्य आधार भी सूर्य प्रकाश को माना जाता है। यही मुख्य एवं प्राकृतिक उपचार पद्धति है जो अत्यन्त प्राचीन एवं सफल है। हालाँकि कृत्रिम ब्राइट लाइट थैरेपी एवं अन्य प्रकाश थैरेपी का भी प्रयोग किया जाता है, परन्तु इनमें भी प्रकाश की तीव्रता 10,000 लक्स प्रकाश से आधिक नहीं होती।

सूर्य प्रकाश पर अन्वेषण-अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक एस. फैरो के अनुसार ‘सन लाइट थेरेपी’ (सूर्य प्रकाश उपचार) अत्यन्त प्रभावशाली है। सूर्य रश्मियों की महत्ता को रेखाँकित करते हुए फैरो ने उल्लेख किया है कि इसमें सभी प्रकार की किरणें होती हैं। इसमें इन्फ्रारेड से लेकर अल्ट्रावायलेट किरणें होती हैं तथा आँखों व शरीर के अनुकूल प्रभाव डालती हैं। सूर्य प्रकाश की इस विशेषता को फैरो ने अद्भुत एवं आश्चर्यजनक कहा है। इसी कारण सूर्य प्रकाश को ‘फुल-स्पेक्ट्रम ओरीजनल लाइट’ कहा जाता है।

लाइट थेरेपी में प्रकाश को आँखों के माध्यम से पीनियल ग्लैण्ड्स तक पहुँचाया जाता है, उसे सक्रिय एवं जागृत कराया जाता है। उसी ग्रंथि को थर्ड आई (तीसरा नेत्र) कहा जाता है जिसमें दूर दृष्टि की क्षमता होती है। सिग्रेटो के अनुसार इसे सक्रिय करने के लिए सूर्योदय की सुनहरी किरणों का प्रयोग किया जाता है। डॉ. नेन्सी ने गौघृत के दीपक को भी इसके लिए उपर्युक्त माना है। ये विधियाँ अत्यन्त सफल एवं सुगम हैं। इसके अलावा नाइट लाइट थेरेपी, आप्टिमम् थेरेपी आदि को भी प्रयोग में लाया जाता है।

लाइट थेरेपी से कई प्रकार के रोगों की चिकित्सा की जाती है। यह सेड (सिजनल एफेक्टिव डिसआर्डर) के लिए रामबाण का कार्य करता है। इससे अनिद्रा रोग को भी ठीक होता है। इसके लिए दक्षिण आस्ट्रेलिया में 9 लोगों पर अध्ययन किया गया। इन लोगों को नींद न आने की शिकायत थी। सोने के एक-दो घण्टे के पश्चात् इन्हें नींद नहीं आती थी। इन सभी व्यक्तियों को 2500 लक्स प्रकाश से उपचार किया गया। परिणाम बड़ा ही सुखद रहा। इन्हें अच्छी नींद आने लगी।

स्वस्थ जीवन के लिए 4 से 6 घण्टे की गहरी नींद की आवश्यकता पड़ती है। शराब तथा नींद की गोली लेने वाले व्यक्ति प्रायः ‘डिलेड स्लीप फेस सिण्ड्रोम’ से पीड़ित होते हैं एवं प्रातःकाल में एक-डेढ़ घण्टे ही सो पाते हैं। आमतौर पर यह बीमारी किशोरावस्था में पायी जाती है।

जरथुस्त्र बादशाह गुश्तास्य के दरबार में पहुँचे। उन्हें ईश्वरनिष्ठ जीवन जीने का संदेश दिया। राजा ने कहा, मैं तो सामान्य ज्ञान रखता हूँ, यदि आप हमारे दरबार के विद्वानों का समाधान कर दें, तो मैं आपके निर्देश पूरी तरह मानूँगा।

नेशनल कमीशन ऑफ स्लीप डिसआर्डर रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार इस रोग से पीड़ित पुलिस, अग्नि शामक कर्मचारी, ड्राइवर तथा पायलट अक्सर दुर्घटना के शिकार होते हैं और दुर्घटना का समय भी प्रातःकाल होता है। इन रोगियों के लिए ‘सन लाइट थैरेपी’ अत्यन्त कारगर सिद्ध हुई है। ब्राइट लाइट थैरेपी से भी इन्हें आराम मिला है।

प्रो. हैस्लाक के अनुसार युवाओं का बॉडी क्लॉक जल्दी प्रभावित हो जाता है। एक अध्ययन के मुताबिक इस प्रभाव से मुक्ति देने के लिए मेलेटेनीन का डोज दिया गया। इससे ऐसे रुग्ण युवाओं को नींद तो आयी पर उनकी कार्यक्षमता पर कोई असर नहीं पड़ा। ठीक इसी प्रकार का सर्वेक्षण बेटास्कीवीन, अल्वर्टा तथा कनाडा के कुछ मैनेजमेंट एवं प्रोफेशनल कॉलेजों में किया गया। यहाँ के विद्यार्थियों का फुल स्पेक्ट्रम लाइट से उपचार किया गया। इसमें इनका अनिद्रा रोग ठीक नहीं हुआ, बल्कि इनकी कार्य कुशलता तथा शैक्षणिक उपलब्धियों का स्तर भी बढ़ गया।

किशोरवय की लड़कियों में प्रायः खानपान सम्बन्धी गड़बड़ी पैदा हो जाती है। हालाँकि यह कोई गम्भीर समस्या नहीं है परन्तु यथासमय इसको नहीं सुधारा जाय तो बाद में गम्भीर शारीरिक और मानसिक परेशानियाँ खड़ी हो सकती हैं। इसके लिए सूर्य प्रकाश के संपर्क में आने तथा इसके उपचार का सुझाव दिया जाता है। इसमें सफलता भी मिली है।

महिलाओं में लुपस नामक बीमारी होती है। यह एक प्रकार का आटोइम्यून रोग है,जिससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर एवं दुर्बल हो जाती है और शरीर में अनेक रोग घर कर जाते हैं। इस रोग का लक्षण है थकान, उतावलापन, जोड़ों में दर्द और किडनी की खराबी। ऐसे रोगियों को सूर्य प्रकाश से परहेज करने का दिशा-निर्देश दिया जाता है। परन्तु आधुनिक शोधकर्त्ताओं ने इसे अस्वीकार कर दिया है। इन्होंने सूर्य प्रकाश से ही VA-1 नामक विशिष्ट अल्ट्रावायलेट किरण को खोज निकाला है, जिससे इस रोग को ठीक करने में अभूतपूर्व सफलता मिली है। महिलाओं की मासिक चक्र सम्बन्धी समस्याओं के लिए लाइट थेरेपी कारगर सिद्ध हुई है।

अमेरिका में प्रति वर्ष 10 से 15 लाख लोग डिप्रेशन में चले जाते हैं। और इनमें से 30,000 लोग आत्म हत्या कर लेते हैं। ऐसे लोगों पर सूर्य प्रकाश चिकित्सा अत्यन्त प्रभावकारी सिद्ध हुई है।

अतः स्वस्थ, सुखी एवं निरोगी जीवन के लिए हमें सूर्य प्रकाश याने प्रकृति की ओर फिर लौटना होगा। जितना जल्दी हो सके हमें अपनी इस कृत्रिम जीवन को त्यागकर प्रकृति के सुरम्य आँचल में पनाह लेने के लिए तत्पर होना चाहिए। इसी में समाधान है, यही समझदारी है।


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