प्रार्थना : एक अमोध औषधि

January 2003

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प्रार्थना परमात्मा के प्रति की गयी एक आर्त पुकार है। जब यह पुकार द्रौपदी,मीरा एवं प्रहलाद के समान हृदय से उठती है तो इसका अद्भुत प्रभाव होता है। भावमय भगवान् दौड़ा चला आता है। वह भक्त को कभी निराश नहीं करता। वह उसकी सभी प्रकार की मनोकामना को पूर्ण कर देता है। वह अपने वरदान से भक्त को सराबोर कर देता है। गहन आस्था और प्रबल विश्वास से की गयी प्रार्थना कभी निष्फल नहीं होती। इसका चमत्कारिक परिणाम होता है। इस परिणाम को पदार्थवादी वैज्ञानिक भी मानने लगे हैं, स्वीकारने लगे हैं।

श्री रामकृष्ण परमहंस कहते हैं कि जब मन और वाणी एक होकर कोई चीज माँगते हैं, तब उस प्रार्थना का फल अवश्य मिलता है। मन और वाणी जब एक होकर प्रभु की गुहार लगाते हैं तो उसका सिंहासन डोल उठता है और प्रभु भक्त की सभी इच्छाओं को पूरा कर देते हैं। इसीलिए तो गाँधी जी ने विश्वास प्रकट करते हुए स्पष्ट किया है कि पवित्र हृदय से निकली हुई प्रार्थना कभी व्यर्थ एवं निष्फल नहीं होती, प्रार्थना के माध्यम से ईश्वरीय प्रेम एवं कृपा की वृष्टि होती है। इंसान अपनी इच्छाओं और आकाँक्षाओं को फलीभूत होते देख सकता है। इसी कारण गाँधी जी ने जीवन में प्रार्थना को अपरिहार्य मानते हुए इसे आत्मा की खुराक कहा है।

प्रार्थना वाणी का वाक्जाल नहीं है, जिह्वा की वाचालता नहीं है, बल्कि प्रार्थना तो विकल हृदय की करुणामयी भाषा है। और जब ऐसी भावना उमड़ने-घुमड़ने लगे तो भला भगवान् कैसे शान्त रह सकता है? कैसे इसे अनसुना कर देगा। चार्ल्स फिलमोर ने इस सत्य को शब्द देते हुए उल्लेख किया है प्रार्थना सदैव सुनी जाती है, उसका उत्तर अवश्य मिलता है और यदि हमें इसका उत्तर न मिले तो समझना चाहिए कि ईश्वर के प्रति अपनी भावना में, प्रार्थना में कहीं कोई भूल हुई है,कोई व्यतिक्रम आया है। हमीं से कोई चूक हुई है,जिसका परिणाम हमें नहीं मिल पा रहा है अन्यथा एक चींटी तक की आवाज को सुनने वाला भगवान् हमारी नहीं सुनेगा, हमें जवाब नहीं देगा, ऐसा सम्भव नहीं है। त्रुटियाँ हमारे अन्दर हैं, भगवान् में नहीं।

प्रार्थना के चमत्कारिक परिणामों से चिकित्सक अन्वेषक एवं वैज्ञानिक भी अभिभूत हैं। प्रार्थना से जीवन की जटिल समस्याएँ हल होती हैं और रोग-शोक ठीक होते हैं। प्रार्थना में प्रबल शक्ति और सामर्थ्य होती है। इस तथ्य को प्रमाणित करने के लिए न्यूयार्क की कोलम्बिया यूनीवर्सिटी ‘स्कूल ऑफ मेडिकल साइन्सेज़’ के डॉ. रोजेरियो ए. लोवो ने एक अध्ययन-अन्वेषण किया है। जर्नल्स ऑफ रिप्रोक्टिव हेल्थ में इसका विस्तृत वर्णन मिलता है। डॉ. लोवो ने दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल के एक अस्पताल में गर्भस्थ शिशुओं के सर्वेक्षण के दौरान पाया कि जिन महिलाओं के लिए प्रार्थना की जाती है और जो स्वयं प्रार्थना करती हैं, उनके बच्चों का व्यवहार अधिक श्रेष्ठ हो जाता है।

प्रार्थना के प्रभाव का यह अध्ययन कृत्रिम गर्भाधारण के लिए आयीं 199 महिलाओं पर किया गया। शोध में सम्मिलित सभी महिलाओं की उम्र, स्थान एवं स्थिति एक जैसे व समान थे। 199 महिलाओं में से 99 महिलाओं के लिए अमेरिका, कनाडा और आस्ट्रेलिया के प्रार्थना समूहों ने प्रार्थना की। प्रत्येक प्रार्थना समूह को गर्भाधान में आयी महिला की एक तस्वीर दी गई, जिसके लिए उसे प्रार्थना करनी थी। प्रार्थना का यह शुभ समाचार न तो उपचार से गुजर रही महिलाओं को दिया गया और न उसके परिचारकों को पता था। इसके पीछे एकमात्र उद्देश्य था कि इस सूचना का प्रभाव महिलाओं के परिणाम पर न पड़े। अध्ययनकत्ताओं को भी इस सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं दी गई।

इस अनुसंधान का परिणाम गर्भवती माताओं और उनके शिशुओं पर अत्यन्त सकारात्मक एवं उत्साहवर्धक था। डॉ. लोवी ने इस अध्ययन के पश्चात् कहा कि यह एक अविश्वनीय लेकिन यथार्थ घटना है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि प्रार्थना एक दिव्य औषधि है, महान् उपचार है। इसे सभी को अपनाना चाहिए।

प्रार्थना समस्त समस्याओं का समाधान है। उससे गम्भीर एवं गम्भीरतर रोगों से भी मुक्ति मिल सकती है। चिकित्सकों ने इसे जानने परखने के लिए डरहम में एक रिसर्च किया है। इसमें 150 रोगियों को लिया गया । ये सभी रोगी हृदय की गम्भीर रोग से पीड़ित थे। इन सभी की एन्जियों पलास्टी होनी थी। चिकित्सकों ने पाया कि उपचार के दौरान जिनके लिए प्रार्थना की गई, आपरेशन के दौरान उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं हुई।

‘अमेरिकन हार्ट जर्नल्स’ में प्रार्थना के इस चमत्कारिक विवरण का विस्तार से उल्लेख हुआ है प्रार्थना के प्रभाव को जानने के लिए डरहम् के ड्यूक यूनीवर्सिटी मेडिकल सेण्टर में 150 रोगियों को चुना गया। इन्हें पाँच समूहों में बाँट दिया गया। इनमें से चार समूहों को सामान्य उपचार के साथ पूरक उपचार दिया गया। एक समूह को गाइडेड इमेजरी, दूसरे को स्ट्रेस रिलेक्सेशन, तीसरे को हीलिंग टच तथा चौथे समूह के लिए प्रार्थना की गई। पाँचवा ग्रुप कण्ट्रोल ग्रुप था अर्थात् इनको न कोई पूरक उपचार दिया गया और न प्रार्थना की गई। शोध के पश्चात् इसका भी निष्कर्ष विधेयात्मक निकला। जिस ग्रुप के लिए प्रार्थना की गई वह अपने सभी समूहों की अपेक्षा अधिक अच्छा था। इस ग्रुप के रोगी जल्दी स्वस्थ हो गये एवं इनका आपरेशन भी सफल हुआ।

इस प्रकार प्रार्थना से शारीरिक एवं मानसिक आधि-व्याधियाँ दूर होती हैं। प्रार्थना के द्वारा आन्तरिक प्रवृत्तियों पर विजय पायी जा सकती है और मन को नियंत्रित किया जा सकता है। निष्काम प्रार्थना से चित्त की शुद्धि होती है, चेतना का परिष्कार होता है एवं विकास होता है। व्यक्ति एक नूतन अनुभूति की प्राप्ति करता है। इसी कारण स्वामी रामतीर्थ ने प्रार्थना को देवत्व की अनुभूति एवं प्राप्ति का सुन्दर माध्यम माना है। प्रार्थना से अन्तर के समस्त कषाय-कल्मष धुल जाते हैं एवं नई चेतना का विकास होता है। अतः सच्चे मन से हृदय की गहराई से हम सबको भगवद् प्रार्थना में सदैव संलग्न रहना चाहिए।


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