समर्थ गुरु रामदास शिवाजी को स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी होने का श्रेय देना चाहते थे, इसके निमित्त उन्हें कभी खाली न जाने वाली भवानी तलवार भी दुर्गा से दिलवाना चाहते थे, पर अनुदान देने से पूर्व उनकी पात्रता परख लेना आवश्यक था।
समर्थ ने एक दिन अचानक कहा कि उनके पेट में भयंकर शूल उठा है। प्राण बचाने का एक ही उपाय है कि सिंहनी का दूध मिले। गुरुभक्त और साहस के धनी शिवाजी उसे लाने के लिए तत्काल चल पड़े। माँद में सिंहनी बैठी बच्चों को दूध पिला रही थी। शिवाजी ने कहा, माता, आप मेरे उद्देश्य और संकल्प की उत्कृष्टता पर विश्वास करें तो थोड़ा दूध दे दें। सिंहनी ने सहर्ष दूध निकाल लेने दिया । पात्रता की परख हो गई। समर्थ गुरु रामदास ने शिवाजी की सफलता के लिए सब कुछ दाँव पर लगा दिया।