आत्म अनुशासित (Kavita)

January 2003

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संगठन मजबूत होते हैं तभी। आत्म अनुशासित घटक हों जब सभी॥

आत्म अनुशासन ‘अहं’ का त्याग है, अहं ही तो द्वेष है व राग है। 

 समर्पित हो यदि अहं ‘सिद्धाँत’ को, संगठन को आँच न आए कभी॥ 

संगठन मजबूत होते हैं तभी॥

‘महत्वाकाँक्षा’ अहं को पालती, वही तो है राग−द्वेष उछालती। 

 मारतीं जब जोर स्वार्थी वृत्तियाँ, संगठन भी चरमरा जाते तभी॥ 

आत्म अनुशासित घटक होना सभी॥

संगठन समभाव का परिवार है, और समरसता सहज आधार है। 

उभरती जब व्यक्तिगत दुर्भावना, संगठन की ध्वस्त हो जाती छबी। 

आत्म अनुशासित घटक होना सभी॥

संगठन के लिए सब अर्पित रहें, और सिद्धाँतों को समर्पित रहें। 

हर घटक उत्सर्ग हो सिद्धाँत पर, संगठन को शक्ति मिलती है जभी॥ 

संगठन मजबूत होते हैं तभी॥

संगठन का लक्ष्य जब सर्वार्थ हो, किसलिए बाधक किसी का स्वार्थ हो। 

 ‘लोकसेवी’ संगठन को तोड़ने का, नहीं लेगा भूलकर अपयश कभी॥ 

संगठन मजबूत होते हैं तभी॥

व्यवस्था न नीति कुछ ऐसे चले, आत्म अनुशासन को प्रोत्साहन मिले। 

प्यार और सुधार की इस नीति से, संगठन विगठित नहीं होते कभी॥ 

संगठन मजबूत होते हैं कभी॥

संगठन का हर घटक ‘साधक’ बने, संगठन का फिर नहीं बाधक बने।

जिस घटक में आत्म अनुशासन न हो, उस घटक में साधना की है कमी। 

संगठन मजबूत होते हैं तभी॥ आत्म अनुशासित घटक हों जब सभी॥

−मंगलविजय ‘विजयवर्गीय’

*समाप्त*


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