जिसकी काँति गगन तक फैली, हम मोती उस माला के, जिसने किया जगत आलोकित, हम कण हैं उस ज्वाला के।
महाशक्ति के साथ जुड़े हैं, इसका हमें गुमान है, हममें से हर भक्त राम का, अंगद है, हनुमान है,
भिक्षु-परिव्राजक हम तो हैं, सभी बुद्ध भगवान के, हम वाहक हैं गुरुसत्ता से प्राप्त, अमर सद्ज्ञान के, ग्वाल-बाल हम हैं गिरधर के, सखा उसी नँदलाल के।
हममें फूँके प्राण, उबरा यूँ निर्जन वीरान से, हमें तराशा हीरे जैसा, लाकर किसी खदान से,
पारस बनकर छुआ,भरे हम स्वर्णिम नये निखार से, कुरु से जुड़कर लगे लहरने, हम गंगा की धार से, गंगोत्री के जल हैं हम तो, नहीं नीर नद-नाला के।
कल का समय भयंकर होगा, डूबा गर्द-गुबार में, मानव का पुरुषार्थ न काफी, होगा इस संसार में,
गुरुसत्ता है ज्योतिपुँज, हम जुड़ें अपरिमित ज्योति से, उबर सकेंगे केवल जुड़कर, उसी शक्ति के स्रोत से, किरणें बनकर बिखर जायेंगे, हम उस प्रखर उजाला के।
गुरु का यह संदेश लिये, जायेंगे सकल जहान में, धुल बुहारेंगे जो फैली, हर मन में-इंसान में,
हम सुधरेंगे, युग सुधरेगा, लेकर यह आदर्श हम, अपना कर उत्थान, सभी का कर देंगे उत्कर्ष हम, शिष्य साहसी हैं हम सब तो, शांतिकुंज की शाला के।
-शचीन्द भटनागर