महिलाओं का समाधान (kahani)

May 1993

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न्यूयार्क के न्यायाधीश की कचहरी में एक रोटी चोर पेश किया गया था। पुलिस ने सबूत दिया कि उसने एक नान बाई की दुकान से चार रोटी चुराई थीं। चोर ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए कहा वह भूख से बेचैन था खरीदने के लिए पैसे न थे। कोई मजूरी मिली नहीं। इसलिए विवशता से उसे उतनी छोटी चोरी करनी पड़ी जिससे एक समय का पेट भर जाता। न्यायाधीश ने उस पर एक रुपया जुर्माना किया। साथ ही अदालत में उपस्थित सभी लोगों पर भी एक-एक रुपया जुर्माना किया। उन्हें भी एक प्रकार का अपराधी ठहराया गया कि समाज में इस स्थिति के लोगों के रहते हुए भी वे मौज मजे की जिंदगी कैसे जीते है? जुर्माने की राशि से चोर को कोई छोटा-मोटा व्यवसाय कर लेने की सुविधा दी गयी।

श्रीरामकृष्ण परमहंस की धर्म पत्नी शारदामणि महिलाओं का सत्संग चलाया करती थीं। उसमें नियमित रूप से संभ्रान्त घरों की महिलाएँ बड़ी संख्या में आती। एक वेश्या भी सत्संग में आने लगी। इस पर अन्य महिलाओं ने आपत्ति की और उसे न आने देने के लिए माताजी से कहा।

माता शारदामणि ने कहा-सत्संग तो गंगा है। उसमें तो मेढ़क, मछलियाँ भी रहती है। इससे गंगा कहाँ अपवित्र होती है। गंगा में नहाने से तो अपवित्र भी पवित्र हो जाते है फिर एक वेश्या के आने से सत्संग कैसे अपवित्र हो जायेगा। शिकायत करने वाली महिलाओं का समाधान हो गया।


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