जीवित मंत्र (kahani)

May 1993

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प्रजातंत्र जब असफल होता है तो उसका स्थान तानाशाही लेती है इस दुर्भाग्य का कारण है दुर्बल सरकारें। प्रजातंत्र में सफल सरकार वह है जो भय और गरीबी से जनता को बचा सके। अन्यथा लोग सब खो बैठेंगे और गृह युद्ध जैसी स्थिति में तानाशाही उठ खड़ी होती है। प्रजातंत्र की सफलता ऐसी सशक्त सरकार पर निर्भर है जो जनता के हितों की रक्षा कर सके। ऐसी सरकार बना सकने के लिए सशक्त और सजग जनता का होना आवश्यक है। वस्तुतः जाग्रत जनता ही प्रजातंत्र सफल बनाती है और वही उसका लाभ लेती है।

श्री रामकृष्ण परमहंस कहते थे कि “गायत्री संध्यावंदन की आत्मा है, और उसके जप से ही संध्या का फल मिलता है। ब्राह्मणों के संध्यावन्दन की परिणति गायत्री में होती है और गायत्री की ॐ में होती है।”

स्वामी विवेकानन्द भी प्राणायाम के अवसर पर गायत्री का जप करने का समर्थन करते थे। उनके मतानुसार-”गायत्री का नियमित जप करते रहने से नीच आदमी भी बदल कर बहुत ऊँचे दर्जे पर पहुँच सकता है। भारत वर्ष में जात-पाँत और सामाजिक प्रथाओं में विभिन्नता की हो बहुत बड़ी बाधा पाई जाती है, उसके प्रतिकार का उपाय यही है कि जैसा भगवान् कृष्ण ने भगवद्गीता (अध्याय 4 श्लोक 13 ) में कहा है हमको पुनः हिन्दू समाज में चार वर्णों के पुनर्स्थापन का प्रयत्न करना चाहिए। इसके लिए गायत्री की उपासना भी बड़ी उपयोगी है क्योंकि उसमें कहा गया है कि हम इस ब्रह्मांड का सृजन करने वाले परम्-तत्व का ध्यान करते हैं, वह हमारे मन को-अन्तःकरण को प्रकाशित करें।” पवित्रता, ओज, गहनता, माधुर्य, हृदयंगमता, प्रसाद पूर्णता की दृष्टि से वेद की ऋचाएँ अद्वितीय है। उनमें गायत्री मंत्र सर्वश्रेष्ठ है इस मंत्र के जप से मनुष्य का मन शान्त ही नहीं होता वरन् उसके महान तेज से उसका हृदय भी प्रकाशित होता है। यह एक जीवित मंत्र है।


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