दो मित्र थे। एक के पास कीमती घोड़ा था। दूसरा उसे किसी भी प्रकार प्राप्त करने को व्याकुल था। पहले ने स्पष्ट इनकार कर दिया। इस पर दूसरे ने एक चाल चली। अँधेरे में वह एक बीमार बुढ़िया का रूप बनाकर बैठ गया। जैसे ही वह घुड़सवार उधर से निकला वैसे ही बुढ़िया ने प्रार्थना की उसका गाँव थोड़ी ही दूर पर है। बीमारी की वजह से वह चल नहीं सकती। उसे घोड़े पर बिठा लिया जाय। घुड़सवार दयालु था। उसने बुढ़िया को घोड़े पर बिठा दिया स्वयं पैदल चलने लगा। अवसर पाकर बुढ़िया बने मित्र ने घोड़ा धर दौड़ाया और कहता गया मैंने चतुरता से घोड़ा ले लिया। ठगे गये मित्र ने आवाज देकर रोका और कहा, घोड़ा भले ही ले जाओ पर इस बात की चर्चा किसी से न करना अन्यथा किसी अन्य वास्तविक गरीब बीमार का हक मारा जायेगा। लोग फिर किसी भी गरीब-बीमार का विश्वास न करेंगे और नेकी करने में भी जोखिम अनुभव करेंगे।