नगर में नाटक मण्डली आयी। नाटक के मालिक ने बर्नार्डशा को भी आमंत्रित करना उचित समझा। सोचा कि उनके आने से ख्याति फैलेगी। भले-बुरे की राय भी मिलेगी। किन्तु नाटक प्रारंभ होते ही बर्नार्डशा ऊँघने लगे। नाटक लम्बा चला शॉ खर्राटे भर कर सोने लगे। मालिक बड़ा हैरान कि यह क्या गलती हो गई। बूढ़े को उठाना भी उचित नहीं है। शिष्टाचार के नाते कुछ कह भी नहीं सकता था। नाटक पूरा हुआ।। शॉ ने आँखें खोलीं। उठाकर चलने लगे। मालिक बोला-”श्रीमान्! कैसा लगा नाटक। अपनी राय प्रकट करते जाते तो हमें प्रसन्नता होती।” शॉ बोले “क्या अब भी मन्तव्य प्रकट करने की आवश्यकता है?” उनका इशारा प्रगाढ़ निद्रा की ओर था।