सारी समस्याएँ सामंजस्य की ही तो हैं

May 1993

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

इस अनंत अंतरिक्ष के विभिन्न खगोलीय पिण्डों के बीच परस्पर तालमेल न रहे, तो शायद आज जैसा संतुलन इस ब्रह्मांड में न रहने पाये, उनके घटकों में विभिन्न प्रकार की विसंगतियाँ उठ खड़ी हों और जीवन-सातत्य भी पृथ्वी पर संभवतः संदिग्ध बन जाय। यह सामंजस्य जड़ की ही नहीं, चेतन की, संपूर्ण प्रकृति की सर्वोपरि आवश्यकता है। इसके न निभ सकने की स्थिति में जहाँ ग्रह-गोलक नियमन-नियंत्रण खो बैठते हैं, वहीं परिवार, समाज, संसार सब अस्त−व्यस्त हो जाते हैं, एवं उनकी प्रगति अवरुद्ध हो जाती है। अस्तु जहाँ प्रगति की आकाँक्षा हो, वहाँ तालमेल का अनुबंध भी अनिवार्य रूप से आवश्यक माना गया है।

शरीर तंत्र भी इसका अपवाद नहीं। वहाँ इसकी अनिवार्यता तब अपरिहार्य लगने लगती है, जब तनिक-सा व्यतिक्रम विशाल जितना व्यतिरेक उत्पन्न कर देता है। यदि साँस चलने के लिए सन्नद्ध हो और रक्त अपना संचरण रोक दे तो? यदि हृदय धड़कना चाह रहा हो, पर फेफड़े उसका साथ देने से इनकार कर दें तो? जीवन अपना निर्वाह आगे रखना चाहे, किंतु मरण सामने आ धमकने के लिए मचलने लगे, तब कशमकश की कितनी विकट स्थिति उपस्थित हो सकती है-यह विचारणीय विषय है। ऐसे में सिवाय समझौता के और कोई दूसरा विकल्प शेष रह नहीं जाता। अतएव इन अवसरों पर शरीर-प्रणाली को भी मतभेद समाप्त कर संतुलित ढंग से चलने के सामान्य सिद्धाँत का ही सहारा लेना पड़ता है। जब किन्हीं कारणों से वह इसकी उपेक्षा करता अथवा ऐसा करने के लिए विवश कर दिया जाता है, तो कितना भारी उपद्रव उठ खड़ा होता है, इसे शरीरशास्त्री भलीभाँति जानते हैं। आपरेशन के दौरान होने वाली भूलों से कई बार इस प्रकार की इतनी भयानक विपत्तियाँ प्रस्तुत होती हैं कि शरीर तंत्र में तालमेल का-सामंजस्य बिठा कर चलने का कितना बड़ा महत्व है- इसकी ठीक-ठीक जानकारी तभी मिलती है।

एक ऐसी ही घटना का उल्लेख “स्ट्रैन्ज स्टोरीज, एमैजिंग फैक्ट्स” नामक पुस्तक में किया गया है। हुआ यों कि क्रिस्टोफर मैके नामक एक व्यक्ति को मस्तिष्क के एक आपरेशन हेतु “सेण्ट पॉल-रैमजे मेडिकल सेंटर, मिनिसोटा” में भर्ती किया गया। आपरेशन के उपराँत जब उसे छुट्टी मिली, तो एक सुबह उसकी हरकत को देखकर परिवार के सदस्य चौंके। प्रातः जब वह सो का उठा, तो दैनिक क्रिया से निवृत्त होने के पश्चात ऑफिस जाने के लिए अपनी कमीज-पैण्ट पहनने लगा, पर यह क्या! स्वजनों ने देखा कि जब-जब मैके पैण्ट पहनने की कोशिश करता और बांये हाथ से उसे ऊपर उठाता, तब-तब दांया हाथ तत्क्षण उसे नीचे सरका देता। बड़ी विचित्र स्थिति थी। आरंभ में पिता ने समझा कि क्रिस्टोफर मसखरी कर रहा है, किंतु ऐसा करते जब दस मिनट के करीब बीत गये, और मैके के चेहरे में भी परेशानी उभरती दिखाई पड़ी, तो पिता गंभीर हुए। उन्होंने पुत्र से कारण पूछा तो स्थिति स्पष्ट हो गई। क्रिस्टोफर ऐसा जानबूझ कर नहीं कर रहा था। वह तो पैण्ट पहनना चाह रहा था। उसका एक हाथ इसमें सहयोग भी कर रहा था, पर दूसरा न जाने क्यों असहयोग करने पर तुला था। इससे वह स्वयं भी हैरान था।

एक अन्य अवसर पर जब वह एक बेकार पुर्जा बाहर फेंकने का प्रयास कर रहा था, तो तत्काल उसका बांया हाथ उसके दांये हाथ को पकड़ लेता। एक बाँह पुर्जा फेंकना चाहती, तो दूसरी उसे पकड़ कर ऐसा करने से रोक देती। जब अक्सर ऐसे मौके सामने आने लगे, तो क्रिस्टोफर को पुनः डॉक्टरों को दिखाया गया। गहन परीक्षण से पता चला कि उसका “कारपस कैलोसम” नामक एक तंत्रिका गुच्छक कट गया है। यह तंत्रिका-गुच्छक मस्तिष्क के दोनों गोलार्धों के मध्य महत्वपूर्ण संपर्क-सूत्र का काम करता है। दोनों भागों के बीच संपर्क स्थापित न हो पाने के कारण ही यह जटिलता उत्पन्न हो गई थी। माइक्रो सर्जरी के बाद जब पुनः उसे जोड़ दिया गया तो समस्या समाप्त हो गई।

उसके कट जाने मात्र से ऐसी क्या बात हो जाती है कि इतने भर से रोगी को ऐसी गंभीर मुसीबत का सामना करना पड़ता है? इस संबंध में तंत्रिका विज्ञानियों का कहना है कि वस्तुतः यह अवस्था सामंजस्य के अभाव के कारण विनिर्मित होती है। वे कहते हैं कि मस्तिष्क के दांये-बांये दो भागों में से दांये हिस्से से शरीर का सम्पूर्ण बांया भाग संचालित होता है, जबकि बांये गोलार्ध से समस्त दांया हिस्सा। इतने पर भी दोनों गोलार्ध परस्पर सूचनाओं का आदान−प्रदान कर अपनी स्वतंत्र गतिविधियों से एक-दूसरे को बराबर अवगत कराते रहते हैं। जब तक उनमें इस प्रकार का संपर्क सूत्र बना रहता है, तब तक कोई असामान्यता परिलक्षित नहीं होती, किंतु संपर्क माध्यम के टूटते ही ऐसे चित्र−विचित्र लक्षण प्रकट होने लगते हैं, जो इस बात के द्योतक होते हैं कि मस्तिष्क के दोनों भागों के बीच का तालमेल भंग हो गया। ऐसी स्थिति में सामान्य जीवन जटिल हो जाता है और व्यक्ति को पुनः चिकित्सकों की शरण में जाना पड़ता है। हम जिस परिवार में, समाज में, समुदाय और राष्ट्र में रहते हैं, वहाँ भी इस प्रकार के सामंजस्य की आवश्यकता पग-पग पर पड़ती है। जब कभी उनसे यह संगति समाप्त होती या बिगड़ती है, तो आज जैसी विषम परिस्थिति पैदा होती देखी जाती है। इन दिनों के संकट का एक ही कारण है-ताल मेल का अभाव। वर्तमान में परिवार संस्था इसलिए विश्रृंखलित होती जा रही है, क्योंकि उनके सदस्य आपसी मतैक्य स्थापित करने में बुरी तरह विफल रहे हैं। बच्चों को उसमें अपनी अवगति और बुराई नजर आती है। कभी अभिभावक जिसमें परिवार की भलाई समझते हैं बच्चों को उसमें अपनी अवगति और बुराई नजर आती है। कभी अभिभावक एकदम कठोर बन जाते हैं, तो कभी बच्चे बिल्कुल दुराग्रही। इस प्रकार दोनों ही दो अतियों-दो सिरों के दो चरम बिंदुओं में अव्यवस्थित हो जाते हैं। कोई भी एक झुकने को तनिक भी तैयार नहीं होता। परिणाम स्वरूप परिवार टूटने लगते हैं। बढ़ते वर्ग संघर्ष के पीछे भी यही कारण है। वे एक-दूसरे से आगे निकल जाने, स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने, सम्मानित कहलाने के लिए ऐसे औंधे–सीधे कृत्य करने में संलग्न हो जाते हैं, जिससे दूसरे की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचती है। जब दूसरे भी प्रतिक्रिया स्वरूप वैसी ही रीति-नीति अपनाते हैं तो दोनों में ठन जाती है। फिर वे एक-दूसरे को नीचा दिखाने का अवसर की तलाश में रहते और मौका मिलते ही वैसा कर गुजरने से नहीं चूकते। आज धर्मक्षेत्र व राजनीति में उन्मादियों की इसी मानसिकता के कारण चहुं ओर ऐसी भयावह स्थिति घटाटोप की तरह घिरी हुई है कि कब और कहाँ कहर बनकर बरस पड़े, कुछ कहा नहीं जा सकता। संभवतः इन्हीं संभावनाओं का अनुमान करते हुए मूर्धन्य जर्मन वैज्ञानिक वानडेन एरिक ने अपनी पुस्तक “क्राइसिस ऑफ दि पे्रजेण्ट ईपाक” में लिखा है कि वर्तमान संकट का एक प्रमुख कारण द्वैतवादी और बहुवादी विचारधारा है। जिस दिन यह अद्वैतवादी विचारधारा में समाहित हो जायेंगे, उसी दिन संसार के सारे संकट प्रभात होते ही ओस-बिंदु के तिरोहित होने की तरह समाप्त हो जायेंगे। कथन में कितनी सच्चाई है-इसे उस परिवार अथवा समुदाय का गहन अध्ययन करके जाँचा-परखा जा सकता है, जहाँ अद्वैत की एकात्मता की-ऐक्य की विचारधारा काम करती और समूह में सामंजस्य का अद्भुत नमूना प्रस्तुत करती है।

समाधान के निमित्त इतना ही कहा जा सकता है कि यदि प्रकृतिगत नियमों को ध्यान में रखकर वैसी ही रीति-नीति जीवन में अपनायी जाये तो पृथक-पृथक इकाई जैसा होते हुए भी हम एक समग्र प्रणाली का ऐसा अनूठा उदाहरण उपस्थित कर सकते हैं, जो निसर्ग के कण-कण में सहयोग-सहकार की तरह तालमेल की तरह पग-पग पर दृश्यमान होता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118