सिर पीट लिया (kahani)

May 1993

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लड़की छोटी थी। वह अपने छोटे भाई को पीठ पर लाद कर खेत से घर ला रही थी।

राहगीर ने पूछा बेटा पीठ पर लदा लड़का तो तुमसे कुछ ही छोटा है। इसे लाद ले चलना तो तुम्हें भारी पड़ता होगा।

एक प्रसिद्ध लेखक मद्रास के मुख्य मंत्री के पास गये और उनका विस्तृत जीवन चरित्र छापने की सहमति माँगने लगे। मुख्यमंत्री ने दर्जनों नाम नोट कराये और कहा उन लोकसेवियों की जीवन गाथायें आप लिख दें मैंने तो मंत्री पद प्राप्त करके अपनी सेवाओं की पहले ही कीमत वसूल कर ली है।

घंटों सत्संग चलता। आत्मा परमात्मा की बातें चलती। महात्मा समझाता “आत्मा शुद्ध है, बुद्ध है, निष्पाप है। निष्कलंक है। कीर्तन कराता प्रसाद बाँटता।” सब बिदा हो जाते और अपने-अपने काम में पूर्व की तरह लग जाते। नित्य यही क्रम चलता किंतु बड़ी हैरानी हुई लोग ज्यों के त्यों बेईमान, चोर, रिश्वतखोर, मिलावट करने, कम तौलने से न चूकते। झूठ फरेबी के जाल रचते। एक तर्कवादी सत्संगी से उलझ पड़ा कि काटा बाजारी, झूठ-फरेबी के जाल रचते। एक तर्कवादी सत्संगी से उलझ पड़ा कि काटा बाजारी, झूठ-फरेबी के जाल रचते। एक तर्कवादी सत्संगी से उलझ पड़ा कि काटा बाजारी, झूठ-फरेबी और सत्संग की क्या संगति इस दिखावे क क्या लाभ। सत्संगी बोला “आत्मा शुद्ध है, बुद्ध है, निष्पाप है। निष्कलंक है। उसे कुछ पाप नहीं लगता। कोई दोष नहीं लगता। वह कभी अशुद्ध नहीं होती।” सुनने वालों ने सिर पीट लिया। कहा हो गया उद्धार। धर्मोपदेशक हम दैनंदिन जीवन में नित्य देखते रहते हैं।


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