बंदर का एक बच्चा था-बड़े नटखट स्वभाव का। माता-पिता का कहना न मानता। जो मर्जी आती सो करता। एक दिन बढ़ई तख्ता चीर रहे थे। शाम को काम बंद किया तो चिराव की जगह पर लकड़ी का टुकड़ा लगा दिया ताकि दूसरे दिन चीरने में सुविधा रहे।
नटखट बंदर बालक ने उस तख्ते पर चढ़कर कुदकना आरंभ किया बाप ने समझाया पर उसने एक न मानी। तख्ते के बीच में लगी हुई खपच निकल गई और उस चिराव के दरार में बंदर की पूछ फँस गयी। बहुत जोर लगाकर उसे निकाला गया पर बीच पूछ का काफी हिस्सा तो लहूलुहान हो ही गया। जो बच्चे बड़ों का कहना नहीं मानते उन्हें ऐसी ही मुसीबत में फँसना पड़ता है।