परस्पर एक सूत्र में जुड़ें हम सब

May 1993

Read Scan Version
<<   |   <  | |   >   |   >>

समुद्र अनेकानेक बूँदों तथा लहरों का समुच्चय है। प्रत्येक लहर का अस्तित्व अलग अलग दिखाई पड़ते है। उगते सूरज के समक्ष देखें तो हर लहर पर एक स्वतंत्र सूरज होता है इतने पर भी यदि तात्विक दृष्टि से देखा जाय तो प्रतीत होता है कि इस भिन्नता के मूल में एक अविच्छिन्न एकता की सत्ता विद्यमान है। सारा समुद्र एक ही है वही एक सूर्य असंख्यों लहरों पर चमकता दिखाई दे रहा है। हवा और जल के संयोग उत्पन्न होते रहने वाले बबूल एक दूसरे से अलग दिखाई भले ही दें वे उस सुविस्तृत जलाशय से पृथक नहीं माने जा सकते।

मनुष्य धरती पर अरबों की संख्या में हैं। देह तथा आकृति-प्रकृति रंग सभी में अंतर है इतने पर भी वे सभी एक ही अनन्त सत्ता विश्वात्मा के अविच्छिन्न अंग अवयव हैं माला के मध्य पिरोय के सूत्र की तरह एक ही आत्मा सबको एकत्व के बंधनों में बाँधे हुए है। देखने में हम भिन्न-भिन्न लग सकते हैं पर हमारा अस्तित्व पूर्णतया एक दूसरे पर निर्भर है। एकाकी हमारा जी पाना एक क्षण के लिए भी संभव नहीं। दूसरी उपलब्धियों का उपयोग किए बिना हम अपने अस्तित्व की रक्षा कर ही नहीं सकते, प्राणिमात्र के भीतर काम करने वाली इस एकात्म चेतना अनुभूति ही अध्यात्म दर्शन का मूलभूत आधार है समष्टि की ईकाई ही व्यष्टि है। मनुष्य समाज का घटक मात्र मानकर अपना विकास करें तो वह जीवन लक्ष्य सहज ही प्राप्त हो सकता है जिसे ईश्वर प्राप्ति कहा गया है।


<<   |   <  | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118