“ या तो अभी या कभी नहीं’’

April 1993

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

जर्जर महान आये दिन गिरते रहते हैं पर भवन कितने ही विशालकाय हो यदि आधार स्तम्भ सुदृढ़ हो तो वे भयंकर भूचालों में भी अविचलित खड़े रहते हैं। तूफान हो झंझावात हों, समुद्र गहरा हो तो भी कुशल माँझी नाव किनारे पहुँचा देते हैं। युद्ध कितना ही भीषण हो, अनेक मोर्चों पर लड़ा जा रहा हो तो भी साहसी और सूझबूझ वाले सेनापति जियी होते हैं, यश प्राप्त करते हैं। कुल चौदह किन्तु मूर्धन्य व्यक्तियों से बनी निहत्थी काँग्रेस ने ब्रिटिश हुकूमत से सत्ता छीन ली थी। अपने शाँति कुँज को इन दिनों एक सौ वैसे ही सुदृढ़ आधार स्तम्भों की, कुशल नाविकों की, साहसी सेनापतियों और मूर्धन्यों की आवश्यकता है। जागृत आत्मायें इस पुकार को सुने-समझे और युग धर्म निर्वाह के लिए आगे आयें। माँ की कोख कलंकित करने वाली कायरता तो न दिखायें।

जिनके मन में राष्ट्रीयहित, सेवा भावना और जातीय स्वाभिमान हो, शिथिल हों किन्तु जिनके पारिवारिक उत्तरदायित्व बहुत बड़े न हों वे शांतिकुंज से पत्र व्यवहार करें, यहीं निवास की बात सोचें। लिप्सायें तो न रावण की पूरी हुई न सिकन्दर की पर औसत भारतीय नागरिक की ब्राह्मणोचित आजीविका में कोई दिक्कत किसी को नहीं आने पायेगी इसे हमारा आश्वासन मानें।

भगवती देवी शर्मा

*समाप्त*


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles