परम् पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी- - “हमने जीवन भर बोया एवं काटा”

April 1993

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इस अंक में हम दे रहे हैं, परमपूज्य गुरुदेव का सूक्ष्मीकरण की अवधि में वीडियो पर रिकार्ड कराया गया एक व्याख्यान जो उनने गायत्री जयंती पर आए परिजनों के लिए जून 1985 में दिया था। ऋद्धियाँ और सिद्धियाँ कैसे साधना से उनके जीवन में आयी? भगवान के खेत में बोना व कई गुना काटना जैसे लाभदायक व्यवसाय को अपने जीवन के प्रसंगों से जोड़कर वे हमें समझाते हैं कि हम सबके लिए भी वही मार्ग खुला पड़ा है।

गायत्री मंत्र साथ-साथ-

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्।

भाइयो, लगभग साठ वर्ष हो गये जब हमारे गुरुदेव घर पर आये थे और उन्होंने कई बातें बतायीं। शुरू में तो डर जैसा कुछ लगा, पर पीछे मालूम पड़ा कि वे पिछले तीन जन्मों से हमारे साथ रहे हैं, तब भय दूर हो गया और बातचीत शुरू हो गयी। उन्होंने कहा-अपनी पात्रता को विकसित करने के लिए तुम्हें चौबीस लक्ष के 24 साल तक 24 पुरश्चरण करने चाहिए। मैंने उनकी वह आज्ञा शिरोधार्य की और सब नियम, विधि वगैरह मालूम कर लिया कि किस प्रकार जौ की रोटी और छाछ पर रह करके 24 पुरश्चरण पूरे करने पड़ेंगे। यह पूरी जानकारी देने के बाद उन्होंने एक और बात कही जो बड़ी महत्वपूर्ण है। आज उसी के बारे में मैं आपको बताऊँगा।

उन्होंने कहा-गायत्री मंत्र कइयों ने जपे हैं, कई लोग उपासना करते हैं, लेकिन ऋद्धियाँ और सिद्धियाँ किसी के पास नहीं आती। जप कर लेते हैं और लोगों से बता देते हैं कि हमने गायत्री का जप कर लिया है, लेकिन न ऋद्धि न सिद्धि। हम तो तुम्हें इस तरह की गायत्री बताना चाहते हैं जिसमें ऋद्धियाँ और सिद्धियाँ भी मिलें और इस जप से ब्राह्मण कुल में उत्पन्न होने का लाभ भी मिले। हमने कहा-यह तो बड़े सौभाग्य की बात है। आप इतनी अच्छी बात बतायेंगे-इससे अधिक अच्छा और सौभाग्य हमारे लिए क्या हो सकता है? तब उन्होंने गायत्री के 24 पुरश्चरणों की विधि बताने के बाद में एक और नयी बात बतायी-”उन्होंने कहा-तुम्हारे पास जो कुछ भी चीज है उसे भगवान के खेत में बोना शुरू करो, वह सौ गुना होकर फिर मिल जायेगा। ऋद्धि और सिद्धि का तरीका यही है, वे फोकट में कहीं नहीं मिलती। दुनिया में ऐसा कोई नहीं है जो ऋद्धियाँ-सिद्धियाँ बाँट रहा हो या कुछ कहीं से मिल रहा हो। इस तरह का कोई नियम नहीं है। बोने पर ही किसान काटता है। ठीक इसी तरीके से तुमको भी बोना और काटना पड़ेगा। कैसे? बताइये सब बातें। उन्होंने कहा-देखो शरीर तुम्हारे पास है। शरीर माने श्रम और समय। इन्हें भगवान के खेत में बोओ। कौन-सा भगवान? यह विराट भगवान जो चारों आरे समाज के रूप में विद्यमान है। इसके लिए तुम अपने श्रम, समय और शरीर को खर्च कर डालो, वह सौ गुना होकर तुमको सब मिल जायेगा नम्बर एक।

नंबर दो-बुद्धि तुम्हारे पास है। भगवान की दी हुई संपदाओं में अमल तुम्हारे पास है। इससे बजाय इस-उस बात का चिंतन करने, अहंकार का चिन्तन करने, वासनाओं का चिन्तन करने, बेकार की बातों का चिन्तन करने की अपेक्षा, अपने चिन्तन करने की जो सामर्थ्य है। उस सारी की सारी सामर्थ्य को भगवान के निमित्त लगा दो। उनकी खेती में बोओ, यह तुम्हारी बुद्धि सौ गुनी होकर तुमको मिल जायेगी।

तीसरी चीज है-भावनायें। मनुष्य के तीन शरीर हैं-स्थूल, सूक्ष्म और कारण। इसमें से स्थूल शरीर से श्रम होता है, सूक्ष्म शरीर में बुद्धि होती है और कारण शरीर में भावनायें होती हैं। भावनायें भी तुम्हारे पास हैं, इन्हें अपने घरेलू आदमियों के साथ में खर्च कर डालने की बजाय भगवान का जो सारा खेत है उद्यान है, उसमें बोओ और यह भावनायें तुम्हें सौ गुनी होकर के मिलेंगी। यह तीन चीजें-शरीर, बुद्धि और भावनायें भगवान ने दिये हैं किसी आदमी ने नहीं। एक और चीज है जो तुम्हारी कमाई हुई है, भले ही वह इस जन्म में कमाया हो या पिछले जन्म में। वह है-धन। धन भगवान किसी को नहीं देता। मनुष्य चाहे ईमानदारी से कमाले या बेईमानी से कमाले या मत कमाये, भगवान को इससे कोई लेना-देना नहीं है। धन जो तुम्हें मिला है-शायद तुम्हारा कमाया हुआ नहीं है। मैंने कहा-मेरा कमाया हुआ कहाँ से हो सकता है?14-15 वर्ष का बच्चा कहाँ से धन कमाकर लायेगा। “अच्छा पिताजी का दिया हुआ धन है। इस सारे के सारे धन को भगवान, के खेत में बो दो और यह सौ गुना होकर के मिल जायेगा।” बस मैंने गाँठ बाँध ली और 60 वर्ष से बँधी हुई वह गाँठ मेरे पास ज्यों की त्यों चली आ रही है। गायत्री उपासना के जब 24 साल से भी अधिक हो गये, उसके बाद भी बोने और काटने का यह सिलसिला बराबर चलता रहा। आप लोग भी अगर बोये तो आप भी सिद्धियाँ पायेंगे-ऋद्धियाँ पायेंगे जैसे कि मैंने पा ली। भगवान के नियम सबके लिए समान हैं। सूरज के लिए सब आदमी एक समान हैं। जो नियम हमारे ऊपर लागू हुए हैं वही आपके ऊपर भी लागू हो सकते हैं। आप भी ऋद्धि-सिद्धियाँ से सराबोर हो सकते हैं। यह चारों चीजें मेरे गुरु ने मुझे बतायी थी और मैं आप से निवेदन कर रहा हूँ। इन चारों चीजों को अगर आप बोना शुरू करें तो वह सौ गुनी होकर के आपको मिलेगी। मुझे तो मिल गया है और मैं अपनी गवाही देकर-साक्षी देकर आप में से हर एक-आदमी को बताना चाहता हूँ कि जो बोयेंगे-वे काटेंगे और किसान के तरीके से फायदे में रहेंगे।

भगवान को आप क्या समझते हैं कि वे बाँटते फिरते हैं? बाँटते तो है, पर उससे पहले वे माँगते फिरते हैं। भगवान की इच्छा माँगने की है। भगवान शबरी के दरवाजे पर गये थे और उससे कहा था कि हम तो भूखे हैं कुछ हो तो खाने को ले आओ। शबरी के पास बेर थे सो उन्होंने ला करके दे दिये और कहा-हमारे पास यही हैं आप खा लीजिए। केवट के पास भगवान गये थे और कहा था-भाई साहब हमको तैरना नहीं आता, मेहरबानी करके हमको, लक्षण और सीताजी को पार निकाल दीजिए। केवट ने निकाल दिया। भगवान माँगते फिरते है। वे सुग्रीव के पास भी गये है, उनका पता लगाने के लिए आप अपनी सेना-हमको दे दे और ऐसा कुछ इंतजार कर दे। जिससे हमारी धर्मपत्नी मिल जाँय तो बड़ी मेहरबानी होगी। सुग्रीव ने वही किया-अपना सर्वस्व दे दिया उनको। हनुमान जी का भी यही हुआ। हनुमान जी से भी वे माँगते फिरे कि हमारा भाई बीमार हो गया है-घायल हो गया है, उसके लिए आप दवा ले आइये। सीता जी को संदेश पहुँचा दीजिए, लंका से उनकी खबर ले आइये। राजा बलि की कहानी मालूम है आपको। वे बलि के पास गये थे और कहा था कि जो कुछ भी तुम्हारे पास है, हमको दे दो। बलि ने कहा-क्या है हमारे पास? तब उन्होंने कहा था कि तुम्हारे पास जमीन है, उसमें से साढ़े तीन कदम हमको दे दो। नाप लिया भगवान ने और जो कुछ भी मालटाल था सारा छीन लिया।

गोपियों से बड़ी मोहब्बत थी उनकी। उनसे कहा-तुम्हारा दही और मक्खन कहाँ रखा है। गोपियाँ समझती थी कि वे भगवान हैं तो सोने-चाँदी के जेवर लायें होगे, कोई उपहार लाये, होंगे पर वे तो कुछ नहीं लाये। उलटे, उन्होंने जो कुछ भी मक्खन तथा दही जमा किया हुआ था, वह भी छीन लिया। कर्ण जब घायल पड़े हुए थे तब अर्जुन को लेकर भगवान उनके मैदान में जा पहुँचे और कहा-अरे कर्ण, हमने सुना था कि तुम्हारे दरवाजे पर से कोई आदमी खाली हाथ नहीं जाता। हम तो कुछ माँगने आये थे, पर तुम कुछ देने की हालत में मालूम नहीं पड़ते। कर्ण ने कहा-नहीं महाराज! ऐसा मत कीजिए-खाली हाथ मत जाइये। मेरे दांतों में सोना लगा हुआ है जिसे उखाड़ कर मैं अभी देता हूँ आपको। उन्होंने एक पत्थर का टुकड़ा लिया और दोनों दाँत तोड़ करके एक अर्जुन के हाथ पर रखा और एक कृष्ण के। इसी तरह सुदामा जी की कहानी है। सुदामा जी की पत्नी ने उनको इसलिए भेजा था कि कृष्ण उनके मित्र है और वे उनसे कुछ माँगकर ले आयें तो गुजारा चले। सुदामा जी गये तो इसी ख्याल से थे, लेकिन भगवान ने उनसे पूछा कि लाये हो या कुछ माँगने आये हो। हमारे दरवाजे पर माँगने वाले तो भिखारी आते हैं, पर तुम लाये क्या हो? पहले यह बताओ। देखा सुदामा जी के बगल में चावल की पोटली दबी थी। उसे पोटली को भगवान ने उनसे माँग लिया और उस चावल को स्वयं खाया तथा अपने परिवार को खिलाया। जो कुछ भी सुदामा जी के पास था अपने परिवार को खिलाया- जो कुछ भी सुदामा जी के पास था सब खाली कर दिया। बाद में उन्हें कुछ दिया होगा जरूर। गोपियों को भी दिया होगा, कर्ण को भी दिया होगा, बालि को भी दिया होगा। हनुमान, केवट, सुग्रीव-सभी को दिया होगा, पर सबसे पहले उन्होंने लिया था।

भगवान जब कभी आते हैं तब माँगते हुए आते हैं। भगवान के साक्षात्कार जब कभी आपको होंगे तब यही मानकर चलना कि वह आप से माँगते हुए आयेंगे। संत नामदेव के पास भगवान कुत्ता का रूप बनाकर गये थे और सूखी रोटी लेकर के भागे थे, तब नामदेव ने कहा था-घी और लेते जाइये। देने के लिए उन्होंने अपना कलेजा चौड़ा किया। मेरे गुरु ने मुझ से यही कहा था। उसी वक्त से मैंने बात गिरह बाँध ली और लगातार जिंदगी के इन 60 वर्षों में देता ही चला आया हूँ जो कुछ भी संभव हुआ है। देने में कोई नुकसान नहीं है। अगर अच्छी जगह बोया जाय तब लाभ ही लाभ है, लेकिन कहीं खराब जगह पर पत्थर पर बो दिया गया तब मुश्किल है। अच्छा खेत भगवान का खेत है, उसमें बोने से ज्यादा होकर मिलेगा। आपने देखा होगा कि बादल समुद्र से लेते हैं और वर्षा कर जाते है पर क्या वे खाली रह जाते है? नहीं-समुद्र उन्हें दुबारा देता है। शरीर का चक्र भी इसी तरह का है। हाथ कमाता है और मुँह को दे देता है और मुँह पेट में पहुँच देता है और वह खून बन जाता है। हाथ खाली रहा है क्या? नहीं हाथ के पास फिर दुबारा माँस के रूप में, रक्त के रूप में, हड्डियों के रूप, स्फूर्ति के रूप में वह ताकत आ जाती है जो उसने कमायी थी। दुनिया का ऐसा ही चक्र है। हम किसी को जो कुछ देते हैं वह घूम फिरकर हमारे पास फिर से आ जाता है। वृक्ष अपने फल, फूल पत्ते सभी कुछ बाँटता रहता है और भगवान उसको दुबारा देते रहते हैं। भेड़ अपनी ऊन बाँटती रहती है। काटने के थोड़े दिन बाद ही शरीर पर ज्यों की त्यों दुबारा ऊन आ जाती है।

देना बहुत शानदार चीज है, हमारे गुरु ने यही बात सिखायी थी। तो आपको कुछ मिला क्या? यही तो मैं बताना चाहता हूँ कि मुझे मिला है और अगर आप हमारी बात पर विश्वास कर सकते हों तो अपने बारे में भी यह ख्याल कर सकते है कि आपको भी मिलेगा-आप भी खाली हाथ रहने वाले नहीं है। इस बात का हमने बराबर ध्यान दिया है। रात के वक्त भगवान का नाम लिया होगा और दिन के वक्त सूरज निकलने से लेकर के सूरज डूबने तक हमने सिर्फ भगवान की सेवायें की हैं। नाम जब कभी हमने लिया होगा तब रात के वक्त लिया होगा और दिन-समाज के रूप में फैले हुए भगवान के लिए खर्च करते रहे। हमारी 75 साल की उम्र होने को आई। इस उम्र में ढेरों के ढेरों आदमी मर जाते है और जो जिन्दा भी रहते है वे किसी काम के नहीं रहते। 60 वर्ष के बाद प्रायः आदमी नकारा हो जाता है, पर हमारे काम करने की ताकत ज्यों की त्यों बनी हुई है। हमारा शरीर लोहे का है। लोहे का क्यों है? इसलिए है कि हमने अपने शरीर को भगवान के काम में लगा दिया है। हमारा शरीर बहुत ठीक है और-अगर आप भी अपने शरीर को समाज के लिए खर्च करना शुरू करें तो ठीक रहेंगे। गाँधी, जवाहर, बिनोवा तीनों 80 वर्ष के होकर मरे थे-यकीन रखिये अगर आप भी अपने शरीर को भगवान के खेत में बोना शुरू करें तो आपके लिए बहुत फायदेमंद वाली बात होगा। यह शरीर की बात हुई।

नंबर दो-अपनी बुद्धि को हमने भगवान के खेत में बोया। बुद्धि हमारे दिमाग में रहती है। कहाँ तक पढ़े हैं आप? हमारे गाँव में प्राइमरी स्कूल है। उस जमाने में दर्जा जार तक प्राइमरी होते थे, अब तो पांचवीं तक होते हैं। वहीं तक हम पढ़े इसके बाद फिर कभी मौका नहीं मिला। जेल में लोहे के तसले के ऊपर कंकड़ों से अँग्रेजी पढ़ना शुरू किया संस्कृत पढ़ना शुरू किया, अमुक भाषा शुरू किया अमुक शुरू किया। हमारी बुद्धि बहुत पैनी है। आपने देखा नहीं-चारों वेदों के भाष्य हमने किये। 18 पुराण 6 दर्शन आदि सभी के भाष्य किये। व्यास जी ने एक महाभारत लिखा था और गणेश जी को मददगार बनाकर ले गये थे। हमने इतना साहित्य लिखा है जो सामान्य नहीं असामान्य बात है। हम प्लानिंग करते हैं। कोई आदमी अपनी खेती का प्लानिंग करता है और हम सारी दुनिया को सारे विश्व को नये सिरे से बनाने की प्लानिंग करते हैं। भारत सरकार की पंचवर्षीय योजनायें बनती हैं जिसके लिए कितना बड़ा स्टाफ, कितने मिनिस्टर और कौन-कौन लोग का करते हैं, लेकिन हम तो सारी दुनिया का नया नक्शा बनाने के लिए इसी अकल से काम कर लेते हैं। अपनी अकल की हम जितनी प्रशंसा करें उतनी ही कम है।

अकल के अलावा हमने अपनी भावनाओं भी भगवान को दे दिया। जो भी कोई आदमी हमारे नजदीक आया होगा तो हमारे मन में उसके प्रति दो ही बातें रही है कि हम अपने सुख को बाँट दें और उसके दुखों को बँटा लें। यदि हम बँटा सकते होंगे तो हमने जी-जान से कोशिश की है। अगर हमारे पास कोई सुख होगा-सामर्थ्य होगी तो हमने बाँटने के लिए बराबर कोशिश की है क्योंकि हमारी भावनायें हमको मजबूत करती हैं। वे कहती हैं कि तुम्हारे पास है और जिनको जरूरत है उनको दोगे नहीं? तो हम कहते हैं कि जरूर देंगे। जो मुसीबत हैं और कहते हैं कि हमारी मुसीबत में हिस्सा नहीं बंटायेंगे क्या? तब हम कहते हैं कि आपकी मुसीबत में हम जरूर हिस्सा बंटायेंगे। हमारी भावनायें इसी तरह की है। भावनायें-जिसे संवेदना कहते हैं-प्यार कहते है, हमने बोया है। फलतः सारी दुनिया हमको बेहद प्यार करती है। हमने प्यार दिया है, प्यार बोया है, इसलिए प्यार पाया है।

भगवान की चीजों को हमने अमानत के तरीके से रखा और उन्हीं के खेत में बोकर उनकी दुनिया के लिए खर्च कर डाला। हमारे पास पिता जी का कमाया हुआ जो भी धन था हमने सब उसी के लिए खर्च कर दिया। हमारे पास जो भी जमीन थी, जेवर थे-सब बेचकर के गायत्री तपोभूमि को बनाने में, भगवान का घर बनाने में खर्च कर दिया। जो पैसा पिता जी ने छोड़ा हुआ था-एक-एक पाई खर्च कर डाला। हमने किसी का दिया हुआ धन खाया नहीं। तो आप नुकसान में रहें होंगे? आप नुकसान की बात करते हैं-कभी आप हमारे गाँव जाइये, गायत्री तपोभूमि मथुरा, अखण्ड-ज्योति कार्यालय देखिये। आप यहाँ आइये शान्तिकुँज, गायत्री नगर देखिये-ब्रह्मवर्चस् देखिये, कितने शानदार हैं। 2400 गायत्री शक्ति पीठों को देखिये। इतनी तो बिल्डिंगें हैं और जो उनमें लोग रहते है, उन पर जो रुपया खर्च है वह कहाँ से आता है? जाने कहां से आ जाता है कि धन हमारे लिए कम नहीं पड़ता। भगवान की तरफ हम इशारा कर देते हैं और वह हमारे लिए जिन भी वस्तुओं की आवश्यकता होती है, वह सब ज्यों की त्यों भेज देता है। यह क्या हो गया? यह सिद्धियाँ हो गयी। सिद्धियों में हम चार चीजें शुमार करते हैं (1) धन (2) लोगों का प्यार (3) बुद्धि और (4) शारीरिक स्वास्थ्य हमारी सिद्धियाँ है। गायत्री का जप करने से किसी के पास सिद्धियाँ आयी हों या नहीं यह मालूम नहीं, लेकिन हमको जरूर मिली है। इन चारों चीजों की कोई भी परीक्षा ले सकता है।

एक और चीज है- ऋद्धि ऋद्धियाँ वह होती है जो दिखाई नहीं पड़ती। ऋद्धियाँ तीन हैं और सिद्धियाँ चार। पहली ऋद्धि है-आत्मसंतोष। हमारे भीतर इतना संतोष है जितना कि न किसी राजा को होगा, न बिड़ला जी को और न किसी मालदार को। उन्हें नींद नहीं आती है, पर हमको ऐसी नींद आती है कि ढोल बजते रहें, नगाड़े बजते रहें-और हम ऐसे सो जाते हैं। बिल्कुल निश्चिन्त मानों दुनिया की कोई समस्या ही हमारे सामने नहीं है। आत्म-संतोष के अलावा दूसरी ऋद्धि है-लोक सम्मान और जन सहयोग। हमें लोगों का सम्मान ही नहीं उनका सहयोग भी मिला है। माला पहना देना ही सम्मान करना नहीं है, वरन् जनता जिसका सहयोग कर रही हो तो मान लीजिये यह उस आदमी को सम्मान मिला है। माला तो खरीदी भी जा सकती है, लेकिन सम्मान उसमें होता है जिसमें जन सहयोग मिलता है। गाँधी जी का सहयोग किया था लोगों ने। बिनोवा का सम्मान किया था तो सहयोग भी दिया था। ढेरों की ढेरों जमीनें उनको दान में दे दी थीं। गाँधी जी के एक इशारे पर लोग जेल जाने के लिए और फाँसी के तख्तों पर झूलने के लिए-गोलियाँ खाने के लिए चले गये थे। यह उनका सम्मान था और सहयोग था। सम्मान कहते हैं सहयोग को। हमारा भगवान हमारे लिए बहुत सहयोग करती है।

तीसरी ऋद्धि है- दैवी अनुग्रह। दैवी अनुग्रह किसे कहते हैं? आपने रामायण में कई प्रसंग पढ़े होंगे कि जब देवता प्रसन्न होते हैं तब फूल बरसाते हैं और कुछ नहीं बरसाते। कई बार अमुक पर फूल बरसाये, अमुक पर फूल बरसाये। यह क्या है? भगवान की बिना माँगे की सहायता है। बिना माँगे की अकल, बिना माँगे के इशारे, बिना माँगे का सहयोग फूलों के तरीके से बरसाते रहे हैं हमारे ऊपर। अगर ऐसा न होता तो न जाने अब तक हमारा क्या हो गया होता। समय-समय पर जो रास्ते उसने बताये हैं, ऐसे शानदार रास्ते बताये हैं कि उन पर हम चलते गये और वह हमारे ऊपर फूल बरसाते रहे। हमको हमारे पिता की संपत्ति का अधिकार मिला है, कर्तव्य और अधिकार दोनों का जोड़ा मिला हुआ है। भगवान ने हमको अपना बच्चा माना है- बेटा माना है और अधिकार दिया है कि उसको नेक काम में खर्च कर डालना। हमने उसे पिताजी के काम में सब खर्च कर डाला, अपने लिए कुछ नहीं रखा, इसलिए कि पिताजी का वंश, पिताजी का कुल कलंकित न होने पावे। पिताजी माने भगवान-परमेश्वर। परमेश्वर का भक्त कहलाने के कारण हमारे ऊपर कोई यह अँगुली न उठाने पाये कि यह कैसा आदमी है। हमने उनके वंश को सुरक्षित रखा है।

भगवान ने हमको दिया तो है, पर हमने भी कुछ दिया है। पिता की मृत्यु हो जाती है और उनका कुटुम्ब रह जाता है। भाई, बहन, बच्चे-कच्चे, स्त्री सभी का पालन वह करता है जो परिवार में बड़ा होता है। अपने पिताजी के वरिष्ठ का ही नहीं, वरन् उनका जो इतना बड़ा विराट कुटुम्ब फैला हुआ है- इन सबका पालन करने में, उनकी निगरानी करने में, उनकी देखभाल करने में जो कुछ भी हमारे लिए संभव हुआ, हमने ईमानदारी से किया है। भगवान की दुकान, भगवान के कुटुम्ब का भी पालन किया है। भगवान की दुकान, भगवान का व्यवसाय, उद्योग अच्छे तरीके से चलता रहे, कोई यह न कहने पावे कि बाप इनके लिए खेत छोड़ कर मरा था- कारखाना-फैक्ट्री छोड़कर गया था और इन्होंने सब बिगाड़ डाला। व्यवसाय भगवान का-

दुकान भगवान की-आप तो समझते ही नहीं, यह सारा व्यवसाय तो उसी का है। दुनिया में जो कुछ भी हो रहा है-सब उसी का उद्योग है। उसको ठीक तरह से-बढ़िया ढंग से चलाने में हमने ईमानदारी से पूरी-पूरी कोशिश की है। पिता की संपदा लेकर, उनका अधिकार लेकर के हम चुपचाप बैठ नहीं गये-बल्कि अपने फर्ज और कर्तव्य का भी पालन किया है। पिता जी का व्यवसाय चलाने में, उनके परिवार का पालन करने में, उनके कुल और वंश की सुरक्षा रखने में हमने बराबर काम किया है। आप भी यह कीजिए और निहाल हो जाइये। रास्ता एक ही है। जो कानून हमारे ऊपर लागू होता है, वही कानून आपके ऊपर भी लागू होता है। सबके लिए एक कानून एक कायदा है। भगवान न हमारे साथ रियायत करने वाले है न आपके साथ में उनका कोई बैर-विरोध है। तरीके वही हैं जो हमारे जीवन में बताये गये। हमारे गुरु ने हमको तरीका बताया था और हमने स्वीकार कर लिया हम अपने गुरु को बहुत-बहुत धन्यवाद देते हैं कि आप भी उसी रास्ते पर चलिए जिस रास्ते पर हम चले हैं तो आप भी निहाल हो जायेंगे और धन्य हो जायेंगे और क्या कहें आपसे।

ओम् शान्तिः


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