ओहियो के जंगल में एक महिला रहती थी। लकड़ी काटकर अपना गुजारा करती। भेड़ियों से भरे उस जंगल में माँ बेटे दो ही प्राणी रहते थे।
इन विकट परिस्थितियों में कुछ बड़ा होने पर कर्निंघम ने विद्या पढ़ने के लिए समीपवर्ती नगर में जाना शुरू किया। लगातार के परिश्रम से ऊँची शिक्षा प्राप्त कर ली। अच्छी नौकरियाँ मिलने लगी।
पर उसने कहा देश में असंख्य असहाय भरे पड़े है। उसे उनकी सेवा में अपनी जिन्दगी लगानी चाहिए।
उनने असहाय-अनाथ बालकों के लिए निर्वाह, भोजन एवं शिक्षा का प्रबंध करने के लिए एक आश्रम बनाया। बच्चे कुछ स्वावलंबनपूर्वक कमा लेते थे और कुछ उदार लोगों से सहायता के रूप में मिल जाता था।
इस समय उसमें दस हजार अनाथ निर्वाह कर शिक्षा प्राप्त करते है।