एक चालाक भालू था। उसने एक बन्दर को अपना दोस्त बनाकर मतलब गाँठने का रास्ता निकाला। भालू पानी में घुसकर मछली पकड़ता था। इसमें उसे बहुत श्रम करना पड़ता और थोड़ा लाभ हाथ आता। नई तरकीब उसने यह निकाली कि बंदर की पूछ में आटा लिपटा देता। गंध पाकर मछलियाँ वहाँ आती। भालू पानी में ही छिप कर बैठा रहता। मछली पास आते ही उन्हें पकड़ लेता। जल्दी पेट भर लेता। बदले में भालू बंदर को बेर बीन कर दिया करता।
इस षड़यंत्र का पता एक मगर को लग गया। वह दूर बैठा यह दृश्य देखा करता। आटे की गंध उसे भी आकर्षित करती। एक दिन मगर ने बंदर को धर दबोचा और उसे हड़प लिया।
बदमाशी में साझीदार बनने का क्या नतीजा होता है यह बंदर ने तब अनुभव किया जब वह मगर की दाढ़ों में फँस गया।