चौदह वर्षीय सेण्डो अत्यन्त कृशकाय था। जन्म से ही उसे जुकाम खाँसी की शिकायत थी। वह एक दिन अपने पिता के साथ पहलवानों का दंगल देखने गया। वहाँ योद्धाओं की पुष्ट काया को देखने वाली चित्र प्रदर्शनी भी लगी थी।
बालक ने ध्यानपूर्वक चित्र को देखा। ललचाई आँखों से पिता को देखा और पूछा कि क्या वह भी कभी ऐसा ही पुष्ट शरीर पहलवान बन सकता है।
पिता ने उसे विश्वास दिलाया कि यदि वह स्वास्थ के नियमों का पालन करें तो अवश्य की पुष्ट बन सकता है। बालक ने स्वास्थ के नियमों को गंभीरतापूर्वक पूछा और समझा। इतना ही नहीं दूसरे दिन से ही उनका प्रयोग भी आरंभ कर दिया।
सत्ताईस वर्ष की आयु में सेंडो संसार भर का मूर्धन्य पहलवान बन गया। उसका नाम पहलवानों के समुदाय में हर किसी की जबान पर था।