महानता, बड़प्पन के प्रदर्शन में नहीं

April 1993

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कोई स्वयं को कितना ही बड़ा क्यों न मान ले, उसके साधन कितने ही बढ़े-चढ़े क्यों न हों, उसका वह बड़प्पन अपने तक ही सीमित रहेगा। दूसरे अपने कामों में व्यस्त हैं। किसी का बड़प्पन नापने-तोलने और उससे प्रभावित होने की किसी को फुर्सत नहीं-इस तथ्य को यदि लोग समझ लें, तो कम-से-कम प्रदर्शन और ठाट-बाट के नाम पर जो धन, समय एवं चिन्तन नष्ट होता रहता है, उसकी सहज ही बचत हो सकती है और उस क्षमता को शान-शौकत की, बड़प्पन-प्रदर्शन की मूर्खता से बचा कर किसी उपयोगी काम में लगाया जा सकता है।

अपने सौरमण्डल के प्रायः सभी ग्रह हमें दिखाई देते हैं। सूर्य को छोड़ कर वे छोटे-छोटे खद्योत-से दीखते हैं। यद्यपि वे पृथ्वी से भी बहुत बड़े हैं। उनकी विशालता देखने को न तो हमारे पास समय है न अवकाश। वे अपनी कार्यों में व्यस्त रहें, अपनी समस्याओं को सुलझाते रहें, अपने कर्त्तव्यों को पालते रहें। उनके बड़प्पन को देखने, जानने पर भी हमें क्योंकर उससे प्रभावित होना चाहिए? क्योंकर उसका अनुकरण करना चाहिए?

बृहस्पति सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है, इतना बड़ा कि सभी आठ ग्रह उस अकेले में समा जांय। वह पृथ्वी से 1600 गुना बड़ा ग्रह है, और उससे 60 करोड़ मील दूर है। इस दूरी की तुलना में बेचारा चन्द्रमा जो सिर्फ 2 लाख मील दूर है। पार्श्व में बैठा हुआ प्रतीत होगा।

बृहस्पति की आकर्षण शक्ति इतनी है कि धरती पर रहने वाला कोई डेढ़ मन वजन का मनुष्य वहाँ जाकर 4 मन भारी हो जाय। वह अपनी धुरी पर अत्यन्त द्रुतगति से घूमता है। यह चाल अन्य सब ग्रहों से अधिक है। वहाँ पाँच घंटे का दिन और पाँच घंटे की रात होती है। यदि अंतरिक्ष यानों के माध्यम से वहाँ अन्वेषण का क्रम कभी चल पड़ा तो सबसे पहले यान और यात्री उसके प्रमुख चन्द्रमा “सीरस” पर सवारी गाँठेंगे और वहीं से खोजबीन आरंभ करेंगे। जब आवश्यक जानकारियाँ उपलब्ध हो जायेंगी, तभी बृहस्पति पर उतरेंगे।

बृहस्पति का विस्तार अत्यन्त विशाल है, व्यास 88 हजार मील है। उस पर हजारों मील मोटी गैस के बादलों की पर्त छाई हुई है। सूर्य से 48 करोड़ 30 लाख मील दूर होने के कारण वहाँ गर्मी पहुँचाने वाली किरणें बहुत स्वल्प मात्रा में पहुँचती हैं, इसलिए वह अत्याधिक ठंडा है। अन्य ग्रह सूर्य के समीप हैं। हमारी पृथ्वी सवा नौ करोड़ मील दूर है। मंगल पौने 15 करोड़ मील, शुक्र पौने छः करोड़ मील और बुध साढ़े करोड़ मील है। अत्याधिक दूरी होने के कारण सूर्य-साम्राज्य में रहते हुए भी वह बहुत बातों में आत्म निर्भर है। उसे पूरा औपनिवेशिक स्वराज्य मिला हुआ है। सौर परिवार कॉमनवेल्थ का वह सम्मानित सदस्य होते हुए भी अपने बलबूते पर ही अपना क्रिया−कलाप चलाता है।

गैस बादलों की मोटी परत के नीचे बृहस्पति पर बर्फ की मोटी पर्त जमी है। उस पर कभी-कभी 30 हजार मील लम्बे और 7 हजार मील चौड़े लाल धब्बे दिखाई पड़ते हैं। अनुमान यह है कि यह उसमें ज्वालामुखी फटते रहने और उनके लावा उगलने के कारण दिखाई पड़ते हैं।

बृहस्पति के अनेक छोटे-बड़े चन्द्रमा हैं। इनमें से अभी 12 देखे-जाने जा सके हैं। सोचा जा रहा है कि जब सौर मण्डल की यात्रा पर निकला हुआ मनुष्य बृहस्पति की खोज पर जायेगा, तब पहले उसे इन्हीं में से किसी चन्द्रमा पर रुक कर अपनी खोज आरंभ करनी होगी और वस्तुस्थिति का पता लगाने के बाद उस धरती पर पैर रखने की हिम्मत करनी होगी। अन्य ग्रहों में से शनि के 9 यूरेनस के 5 नेपच्यून के 2 पृथ्वी का एक चन्द्रमा है। 20 खराब 729 करोड़ मील की यात्रा का साधन जुटा कर जब सौरमंडलीय यात्रा आरंभ होगी, तब ये चन्द्रमा ही मूलग्रहों पर उतरने के प्रथम सोपान होंगे। उस यात्रा का सबसे अन्तिम ग्रह प्लूटो होगा। वह आकार में तो पृथ्वी के ही बराबर है, पर सूर्य से इतनी अधिक दूर है कि वहाँ से उसका प्रकाश टिमटिमाती मोमबत्ती जितना ही दिखाई देगा। हमारी पृथ्वी का जीवन प्राण सूर्य, प्लूटो को अपने अस्तित्व भर की जानकारी देने वाला एक छोटा-सा दीपक भर लगेगा।

ऊपर की पंक्तियों में बृहस्पति की विशालता की लेशमात्र जानकारी भर है। यह जानकारी उसके विशाल कलेवर की दृष्टि से इतनी न्यून है, जिसे नारायण माना जा सके। उसके बारे में अभी और भी अनेकों गुनी बड़ी और विस्तृत जानकारी अर्जित करनी शेष है, जो उसके विस्तार-वैभव को सही-सही प्रकट कर सके।

यदि हमारी ही तरह ओछी बुद्धि का बृहस्पति ग्रह होगा, तो यह सोच कर गदगद हुआ करेगा कि सौर परिवार के सारे ग्रह उसकी धाक मानेंगे और पृथ्वी आदि पिंडों पर रहने वाले प्राणी निरन्तर उसका नमन-वन्दन करेंगे, पर ऐसा होता कहाँ हैं? हमें किसी के बड़प्पन से क्या लेना-देना। हमारी अपने बड़प्पन की समस्याएँ ही क्या कम हैं, जो अन्य अनेकों का लेखा-जोखा लेने में माथापच्ची करें। माथापच्ची सफल और सार्थक तभी मानी जा सकती है, जब इससे अपना अथवा और का हित-साधन होता हो, किन्तु जहाँ दोनों में से कुछ भी हाथ न लगे, वहाँ उसे समयक्षेप करने वाली नासमझी ही तो कही जायेगी।

कीट्स ने अपनी कविता “फ्राँम स्टेचर टु सब्लिमेशन” अर्थात् “महिमा से महानता की ओर” में ठीक ही कहा कि जब मनुष्य अपनी ही महिमा का गुणानुवाद अपने मुख से करने लगे, तो समझना चाहिए कि वह उस महानता से दूर हटता जा रहा है, जो उसे सहज में उपलब्ध हो सकती थी। क्षुद्र स्तर के लोग ऐसी ही चर्चा में संलग्न रहने और अपना एवं दूसरों का समय बरबाद करते हैं। महानता यत्र-तत्र उल्लेख कर देने भी रसे व्यक्तित्व में नहीं आ जाती, न ही यह विज्ञापन का विषय है। वस्तुतः यह एक ऐसी विभूति है, जो बिना कहे हुए भी सामने वाले को बहुत कुछ कहती-बताती रहती है। फूलों को अपने सुगंध की चर्चा करने की कहाँ आवश्यकता पड़ती है। वह काम तो उनकी अद्भुत सुवास ही अनायास करती रहती है और अनेकानेक भौंरों को मदमस्त करती हुई खींच बुलाती है। हिमालय अपने गुणों का बखान करने लगे, तो जिस दिन ऐसा हुआ, उसी दिन उसकी आध्यात्मिकता उसकी दिव्यता समाप्त हो जायेगी और लोग न सिर्फ उसका सान्निध्य-लाभ लेने से कतरायेंगे, वरन् उल्लेख करने में भी कोता ही बरतते पाये जायेंगे।

जॉन रोजवुड अपनी कृति “डिविनिटी ऑफ दि मैन” में लिखते हैं कि महानता बताने की वस्तु नहीं, वरन् करने योग्य कार्य है। वे कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति किसी नुक्कड़ पर दिन-रात यह चीखता रहे कि वह महान है, लोगों को उसका सम्मान करना चाहिए, तो उलटे वह अपमान और उपहास का पात्र साबित होगा। इसके विपरीत यदि लोगों की भलाई के लिए वह छोटा-सा भी कार्य कर दे, तो जनश्रद्धा उसके प्रति सहज ही उमड़ पड़ेगी। श्रद्धा से सम्मान और सम्मान से

महान बनने की ओर उसका मार्ग प्रशस्त हो जायेगा।

स्पष्ट है महानता बड़प्पन प्रदर्शन में नहीं, अपितु अपनी तुलना में अनेकों का अनेक गुना हित-साधन में है। इसके अभाव में वैभव विस्तार सिवाय विज्ञापनबाजी के और कुछ नहीं रह जाता। बृहस्पति का विशाल विस्तार जनमानस में थोड़े समय के लिए कौतूहल तो पैदा करता है, पर पानी के बबूले की तरह उसकी क्षणभंगुरता देर तक टिकती कहाँ है? उसे पसारे तो हम प्रतिदिन अनन्त आकाश में देखते ही रहते हैं, किन्तु उतने भर से समाज का भला क्या लाभ हो सकता है। ऐसे ही कोई व्यक्ति धन-वैभव का खर्चीला ठाट-बाट अपनाये और सोचे कि देखने वाले उसकी चकाचौंध देखकर अवाक् रह जायेंगे, तो इस प्रकार का चिन्तन ओछेपन और बचकानेपन का ही परिचायक होगा। लोग अपने कर्त्तव्यों में व्यस्त रहें और स्वयं हम अपनी शक्ति वैसे कार्यों में नियोजित करें, जो आडम्बर का प्रपंच कर लोगों को दिग्भ्रांत करने और साधन का अपव्यय करने में न लगती हो।


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