चंगुल में फंस गये (kahani)

April 1993

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क्रीमिया के क्षेत्र में भयंकर युद्ध चला। युद्ध में ढेरों सिपाही नित्य मारे जाते और घायल होते। घायलों की बहुत दुर्दशा होती, क्योंकि उनकी साज सँभाल करने का कोई व्यवस्थित तंत्र न था। घायलों को बेमौत मरना पड़ता।

क्रीमिया की एक कुमारी इस अभाव की पूर्ति के लिए आगे आई। उसने अन्य अविवाहित युवतियों को इन घायलों की सेवा करने के लिए प्रोत्साहित और तत्पर किया। एक अच्छी खासी यूनिट बन गई। नाइटिंगेल इस संगठन का नेतृत्व कर रही हैं।

युद्ध के बाद भी इन सेवा भावी लड़कियों से अस्पताल के माध्यम से पीड़ितों की सेवा का कार्य जारी रखा। इस शुभारंभ का आरंभ देश-देशान्तरों में हुआ। सेवा कार्यों में संलग्न नर्स आज सब देशों के अस्पतालों में काम करती दिखाई देती है।

दो बहेलिया ने जाल बिछाया दाना देखकर बहुत से कबूतर उस पर चढ़ गये और सभी के पैर फँस गये। बहेलिया प्रसन्नता था।

पर थोड़ी ही देर में कबूतरों ने मिलकर जोर लगाया और जाल को उखाड़ कर ऊपर उड़ गये।

साथ वाले दूसरे बहेलिये ने कहा-यह बुरा हुआ। आई शिकार हाथ से निकल गई। पहले ने कहा चिन्ता की कोई बात नहीं है। इनमें अनुशासन नहीं है। कोई किसी की बात माने यह आदत इनमें नहीं है। अपनी-अपनी ओर खींचतान करेंगे और उलझ कर जमीन पर गिरेंगे।

ऐसा ही हुआ भी। ये जाल तो अपनी संघ शक्ति के सहारे ऊपर उखाड़ ले गये। पर अनुशासन के अभाव में अपनी-अपनी चलाते हुए नीचे गिरे और फिर बहेलियों के चंगुल में फंस गये।


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