दुर्गति करा बैठे (kahani)

April 1993

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कोई चालाक चोर था। वह बटमारी करता था। एक दिन अकेला ही गया। सामने से चार राहगीर आ रहे थे उसका मन उन्हें लूटने का हुआ पर था अकेला। चारों को कैसे लूटे? उसने “फूट डालो लूट खाओ” की नीति अपनाई।

पूछने पर मालूम हुआ कि चारों अलग-अलग वर्ण के हैं एक ब्राह्मण, एक क्षत्रिय, एक वैश्य, एक नाई। उस चोर ने अलग-अलग ढंग से बात करना शुरू किया।

चोर ने कहा ब्राह्मण हमारे पुरोहित क्षत्रिय हमारे भाई, वैश्य हमारे टेका नाई से क्या वास्ता? तीनों खड़े हो गये अकेला नाई लुटता रहा और इसके हाथ पैर बाँध कर अलग डाल दिया।

इस प्रकार लालजी को लूटा और बाँधा। इसके बाद क्षत्रिय को और अन्त में पण्डित जी की दुर्गति हुई। आपस में एकता न होने के कारण चारों राहगीर एक चोर से अपनी दुर्गति करा बैठे।


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