वातावरण में पलने की सुविधा (kahani)

April 1993

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

लक्ष्मण जी ने राम से पूछा आपने तो एक ही बाण मारा था। फिर इतने छिद्र कैसे हुए।

भगवान् ने कहा मेरे बाण से तो एक ही छिद्र हुआ। पर इसके अपने कुकर्म घाव बनकर अपने आप फूट रहे हैं और अपना रक्त स्वयं ही बहा रहे हैं।

समाज को सुयोग्य नागरिक देकर अपनी परम्परा चलाते रहने का विचार स्वयंभू मनु और उसकी पत्नी शतरूपा में मन में आया।

इसके लिए उनने उतावली नहीं की। पति पत्नी ने अपनी शाश्वतता को समुन्नत बनाने वाला तप किया। वह कार्य एक जन्म में पूरा न हो सका तो उसकी पूर्णता अगले जनम में करने की बात सोची। उत्तम परिणाम के लिए समुन्नत पृष्ठभूमि बनाने की आवश्यकता उनने समझी। दोनों का तप समयानुसार फलित हुआ। अगले जन्म में मनु दशरथ और शतरूपा कौशल्या के रूप में अवतरित हुए। उन्हीं के संयोग से राम जैसे मर्यादा पुरुषोत्तम जन्मे।

सुयोग्य संतान के लिए जन्मदाताओं को उत्कृष्टता अपनानी पड़ती है और बालकों को परिष्कृत वातावरण में पलने की सुविधा उत्पन्न करानी पड़ती है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118