एक बार द्रोणाचार्य से किसी ने पूछा-महाराज आप तो ब्राह्मण हैं। ब्राह्मण का धर्म ज्ञान अर्जित करना, ज्ञान देकर समाज को सुव्यवस्थित रखना है सो तो आप करते ही हैं पर जो ज्ञान से नहीं मानता उसे कैसे ठीक करते हैं। द्रोणाचार्य ने उत्तर दिया-
अग्रता चतुरो वेदा पृष्ठता सशरं धनुः। इदं ब्राह्मणम् इदं क्षात्रं शास्त्रादपि शरादपि॥
अर्थात्-”आगे मैं ब्राह्मण हूँ, मुँह से ज्ञान देता हूँ। किन्तु पीठ में मैंने धनुष बाण धारण किया है अर्थात् जो लोग ज्ञान से मानते है उन्हें ज्ञान से ठीक करता हूँ। जो ज्ञान से नहीं मानते उनके प्रति क्षात्र धर्म का पालन करता हूँ। उन्हें फिर शस्त्र से ठिकाने लगता हूँ।”