अंकुरित अन्न-ऋषि अन्न

July 1990

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आयुर्वेदिक ग्रंथ-काश्यप संहिता में कहा गया है कि संसार में आहार से बढ़कर अन्य दूसरी औषधि नहीं है। इसको सुधार कर मनुष्य सभी प्रकार के रोगों से छुटकारा पा सकता है। उसके अनुसार आहार महाभैषज है। इसी तरह का प्रतिपादन गीताकार ने किया है और कहा है कि पथ्यकारक अन्न सेवन करने पर रुग्णता नहीं घेरती।

वस्तुतः अन्न-धान्य अपने मूल रूप में खाये जाने पर ही औषधि का काम करते हैं। इसलिए उसे ‘अमृतान्न’ भी कहा गया है। उबालने या तलने-भुनने पर इनके बहुत से आवश्यक तत्व नष्ट हो जाते हैं अथवा स्वरूप बदल जाता है। ऐसी स्थिति में कम पोषण ऊर्जा मिलने के कारण उसकी पूर्ति अधिक मात्रा में आहार ग्रहण करके करनी पड़ती है। भोजन की बढ़ी हुई यह मात्रा पूर्णतया पचने और आँतों द्वारा अवशोषित न होने के कारण कब्ज से लेकर अनेकानेक प्रकार की पेट संबंधी बीमारियों के रूप में समय-समय पर फूटती रहती हैं।

पोषणविदों के अनुसार कच्चे अन्न सजीव एवं जीवनीशक्ति से भरपूर होते हैं। प्रायः देखा जाता है कि नरम अवस्था में ताजे कच्चे अन्न को लोग चावपूर्वक खाते हैं। सूखे चने, मटर आदि की अपेक्षा हरे चने, मटर कहीं अधिक पसंद किये जाते हैं। इन्हें बिना नमक या मिर्च मसाले के भी हम खा लेते हैं और तृप्ति अनुभव करते हैं। समस्या कच्चे अनाजों की बारहों महीने उपलब्धता की आती है। इसका भी समाधान ढूँढ़ लिया गया है। स्वच्छ पानी में कुछ घंटों तक डुबोकर रखने पर काम करने लगते हैं। चने, मूँगफली एवं मूँग को भिगोकर कच्ची अवस्था में ग्रहण करने का आम प्रचलन है। व्यायाम के अभ्यासी, पहलवान आदि का तो भीगा हुआ चना उनके पुष्टिवर्धक खुराक का एक प्रमुख अंग होता है। सामान्य जनों के लिए यह पूर्ण आहार का काम कर सकता है।

इसी तरह जब चने भिगोकर खाये जा सकते हैं तो गेहूं, ज्वार, बाजरा जैसे अनाज न खाये जा सकें, इसका कोई कारण नहीं हो सकता। इन बीजों को आवश्यकतानुरूप थोड़े पानी में लगभग 12 घंटे तक रखने के पश्चात् मोटे गीले कपड़े में लपेटकर रख देने भर से ऋतु के अनुसार अंकुर निकल आते हैं। इससे उनकी उपयोगिता और पोषकता में पर्याप्त अभिवृद्धि हो जाती है। अमृतान्न यही है।

कच्चा गेहूं खाने में यह आशंका नहीं ही की जानी चाहिए कि वह उबले हुए आहार की तुलना में देरी से पचेगा या कोई परेशानी पैदा करेगा। तथ्य तो यह है कि जब हरा चना, कच्चेफल, सब्जियाँ या सलाद अच्छी तरह पक सकते हैं, तो कोई कारण नहीं कि भीगे हुए या अंकुरित गेहूं तो चने से भी हल्का होता है। कच्चे या अंकुरित खाद्य की सर्वाधिक विशिष्टता यह है कि पके आहार की तुलना में उसकी आधी मात्रा से भी काम चल जाता है। उससे न केवल क्षुधा निवृत्ति और शरीर पोषण की आवश्यकता पूर्ण होती है, वरन् उससे दूने परिमाण में आवश्यक पोषक तत्व भी उपलब्ध हो जाते हैं। इस तरह के जीवंत आहार उनके लिए विशेष रूप से हितकारी हैं जो सदैव कुपोषण का शिकार बने रहते हैं और आये दिन किसी न किसी प्रकार की रुग्णता से घिरे रहते हैं। ध्यान केवल इतना रखना पड़ेगा कि उत्साहवश नया अभ्यास आरंभ करने से पूर्व अपने पाचन तंत्र एवं स्वास्थ्य संबंधी सभी पक्षों से अवगत हुआ जाय और तब अपनी प्रकृति के अनुरूप उपयुक्त अन्न का चुनाव किया जाए। जीवंत आहार लेने की दिशा में क्रमशः धीरे-धीरे कदम बढ़ाना ही उपयुक्त रहेगा। व्यक्ति की उम्र, ढांचा, खुराक की चीजों के हल्के-भारीपन और शारीरिक कार्य क्षमता के हिसाब से आहार का निर्धारण किया जाना चाहिए।

आहार विशेषज्ञों का कहना है कि प्रायः सभी प्रकार के अन्य-धान्यों को उनके प्राकृतिक रूप में अंकुरित करके अथवा उबाल करके खाया जा सकता है। अंकुरित हो जाने पर वे द्विगुणित पोषक गुणों से भर जाते हैं। विटामिनें, जो बीज अवस्था में पहले प्रसुप्त पड़ी रहती हैं, भीगने और अंकुरित होने पर सक्रिय हो उठती हैं। सूर्य संपर्क में आते ही उनमें विद्यमान क्लोरोफिल नये जीवन तत्व का निर्माण करते और उसे अधिक उपयोगी बना देते हैं। गर्मी के दिनों में अनाजों से अंकुर 24 घण्टों में निकल आते हैं, परन्तु सर्दी के मौसम में अंकुर फूटने में कुछ विलम्ब हो सकता है। मूँग ही एक ऐसी दलहन है जो 92 घंटे में अंकुरित हो जाती है। यहाँ इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि जिस पानी में अनाज को भिगोया गया था उसे फेंक नहीं देना चाहिए, वरन् आटा गूँथने, सब्जी पकाने के काम में ले लेना चाहिए क्योंकि उसमें कुछ क्षार और पोषक तत्व घुले रहते हैं।

मानव शरीर के विकास एवं मांसपेशियों के निर्माण के जिन 27 प्रकार के अमीनो एसिड की आवश्यकता पड़ती है, उनकी पूर्ति सूखी दालों से संभव नहीं हो पाती। स्वास्थ्य विज्ञानियों ने इस अभाव को पूरा करने के लिए गहन अनुसंधान किया और जो निष्कर्ष प्रस्तुत किया है, उसके अनुसार दालों को अंकुरित कर लेने पर इस कमी की भरपाई पूरी तरह हो जाती है। अंकुरित दालों में न केवल प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है, वरन् विटामिन-’ए’ तथा ‘ई’ जैसे जीवनदायी तत्वों की भी बढ़ोत्तरी हो जाती है। जो दालें पहले पचने और आँतों द्वारा आत्मसात करने में भारी पड़ती थीं, वह इन तत्वों के अभ्युदय के कारण सुपाच्य बन जाती हैं। क्षारीय खनिजों की बढ़ोत्तरी के कारण अंकुरित दालों का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। पौष्टिकता के साथ रोग प्रतिरोधी क्षमता की अभिवृद्धि में इससे पर्याप्त सहायता मिलती है।

सोयाबीन के अंकुरित दानों को चले की तरह सब्जी या सलाद में प्रयुक्त किया जा सकता है। सुपाच्य होने के साथ यह विभिन्न खनिज तत्वों एवं विटामिनों का भण्डार है। अंकुरित कर लिये जाने पर इनकी मात्रा कई गुनी अधिक बढ़ जाती है। मूँगफली के स्थान पर सोयाबीन का उपयोग सस्ता भी पड़ता है और लाभदायक भी। एक बर्तन में इसके बीजों को दिन में तीन-चार बार पानी बदल कर रखने से दो दिन के अन्दर अंकुर निकल आते हैं। दो इंच लम्बे अंकुरों में विभिन्न खाद्यतत्वों की भरपूर मात्रा उत्पन्न हो जाती है, जिन्हें सब्जी सलाद आदि रूपों में प्रयुक्त किया जा सकता है। चीन में इसका उपयोग बहुलता से सब्जी के रूप में किया जाता है। वर्ष भर बाजारों में इसकी भरमार रहती हैं। वहाँ का यह एक प्रमुख आहार है। इसका एक कारण यह भी है कि संतुलित आहार की कमियों की पूर्ति इससे सरलतापूर्वक हो जाती है। अंकुरित हो जाने से दाने आसानी से पचने योग्य बन जाते हैं और उनके भीतर जो प्रोटीन, शर्करा तथा विटामिन ‘बी’, ‘सी’ रहते हैं, उनके परिमाण में अभिवृद्धि हो जाती है।

अंकुरित बीजों को न केवल आहार के रूप में सीधे ग्रहण किया जा सकता है, वरन् अभिरुचि के अनुसार उन्हें पीस कर आटे में मिलाकर रोटी अथवा सब्जी के रूप में उपयोग किया जा सकता है।

“हँसेंगे तो सफल समझे जायेंगे और लोगों का सम्मान पायेंगे। रोयेंगे तो साथ देने वाले विरले ही होंगे। सामान्यतया रोने वालों से लोग बचते है कि कहीं अपने दुर्भाग्य की चपेट में हमें भी न लपेट ले।”

इससे आहार की पौष्टिकता भी बढ़ती है और पाचन तंत्र भी सशक्त बनता है। इस प्रकार की खाद्य सामग्री सुपाच्य रहती है, कारण उसमें अन्न से कार्बोज, दालों से प्रोटीन, मूँगफली आदि से चिकनाई एवं अंकुरों से क्षार-लवण, विटामिन आदि सभी तत्वों की एक साथ पूर्ति हो जाती है। इसी तरह सामान्य अमृताशन की अपेक्षा अंकुरित अन्न, मूँग, मूँगफली के साथ उसे पकाया जाय तो वह अधिक लाभदायक सिद्ध होगा। पोषकता प्रदान करने के साथ ही यह आँतों की सफाई का भी काम करता है। दलिया में भी गेहूं के अतिरिक्त पिसी हुई अंकुरित मूँग और मूँगफली मिला देने पर वह स्वादिष्ट, सुपाच्य और पुष्टिकारक बन जाती है।

इस प्रकार यह सहज खाद्य न केवल सतोगुणी होती है, वरन् सस्ता, पौष्टिक एवं सर्व सुलभ भी। अध्यात्म पथ के पथिकों को तो अपनी साधना हेतु विशेषतया इन्हें इसी रूप में प्रयुक्त करना चाहिए।


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