अभिनन्दनीय मानव (Kavita)

July 1990

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इस समय जो ज्योतिवाहक बन सकेगा। कल उसी का काल अभिनन्दन करेगा।

आत्म केन्द्रित हो गया हर कार्य अब तो, दृष्टि मानव की हुई अब संकुचित है,

किन्तु केवल स्वार्थपरता की परिधि में, घूते रहना नहीं बिल्कुल उचित है,

दीन दुखियों के हृदय की वेदना से, जो हृदय होगा द्रवित, क्रन्दन करेगा।

कल उसी का काल अभिनन्दन करेगा॥ उचित पथ पर चल पड़ें ले ज्योति कर में,

यह नयी पीढ़ी हमें नेतृत्व देगी, आज मानवता अँधेरे में भटकती,

कल दिशा पाकर हमें अमरत्व देगी, लोकहित के ताप में खुद को तपाकर,

जो कि निज जीवन यहाँ कुन्दन करेगा। कल उसी का काल अभिनन्दन करेगा॥

हम जहाँ हों सौम्य मुस्कानें बिखेरें, फूल सा खिलता हुआ निज आचरण हो,

कार्य पद्धति और चिन्तन से हमारे,, श्रेष्ठता से पूर्ण हर वातावरण हो,

हर तरफ उगती लताओं पादपों को? गंध देकर काष्ठ से चन्दन करेगा।

कल उसी का काल अभिनन्दन करेगा॥ सौगुना होगा फलित-पुष्पित वही तो,

बीज सा भूगर्भ में जो गल सकेगा, बाँटने को जो यहाँ आलोक सबको,

दीप सा तिल-तिल निरन्तर जल सकेगा, लोक मंगल के लिए जो हो समर्पित,

युग उसी मनु पुत्र का वन्दन करेगा। कल उसी का काल अभिनन्दन करेगा।


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