सहकार का सत्कार (Kavita)

July 1990

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है माँग यह सबसे बड़ी, मिलकर चलो-मिलकर चलो॥ बाती किसी की, स्नेह सबका, किन्तु तुम मिलकर जलों॥

हैं अति कठिन, भीषण बहुत, इस जिन्दगी के रास्ते। संघर्ष करना है जरूरी, सफलता के वास्ते॥

कटता कठिन रस्ता, कि जब हमराह कोई साथ हो। उठता वजन भारी, कि जब, सहयोग का भी हाथ हो॥

सुख दुख सहो, मिलकर परस्पर-पीर सबकी बाँट लो। है माँ यह सबसे बड़ी, मिलकर चलो, मिलकर चलो॥

नदियाँ निरंतर दे रहीं, जलदान खारे सिन्धु को। श्रम कर उदधि बादल बनाता जा रहा हर बिन्दु को॥

सहकार की इस नीति पर, संसार सारा चल रहा। रस-प्राप्ति होती इस तरह, यों सृष्टि का क्रम चल रहा है॥

सहयोग का व्रत लो-घृणा, विद्वेष, ईर्ष्या को दलो। है माँग यह सबसे बड़ी, मिलकर चलो-मिलकर चलो॥

संवेदना का रस, बहुत मीठा-बहुत ही लाभप्रद। “कोई हमारे साथ है” -अनुभूति यह अति ही सुखद॥

मिलकर करो, तो काम दुस्तर भी सरल, लगता सखे! मिलकर जियो तो बोझ जीवन का मृदुल लगता सखे!

सहकार की जय बोलकर सुख-शान्ति के रस में पलो। है माँग यह सब से बड़ी, मिलकर चलो मिलकर चलो॥


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