अपने लिए उपयुक्त वातावरण चुनें या विनिर्मित करें।

July 1990

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आवश्यकता नहीं कि मनुष्य जहाँ जन्मे वहीं मरे भी। सुविधाओं और आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए अनेकों को अपने क्षेत्र छोड़ने पड़ते हैं। धन उपार्जन या सुविधा-साधना पर ध्यान केन्द्रित करके हमें ऐसे क्षेत्रों में रहने के लिए आकर्षित नहीं होना चाहिए जहाँ की जलवायु उपयुक्त नहीं है। कारण कि जलवायु का प्रभाव स्वास्थ्य पर तो पड़ता ही है, स्वभाव से भी उसका गहरा संबंध रहता है। शीतलता गर्मी की अपेक्षा अधिक उपयोगी है। यदि अवसर मिले तो अपने निवास के लिए ऐसे क्षेत्र का चयन करना चाहिए जिसमें हरियाली, शान्ति एवं शीतलता हो। ठंडे क्षेत्र प्राकृतिक न हों तो छोटे देहातों में प्रयत्नपूर्वक वैसी स्थिति पैदा की जा सकती है।

वातावरण का मानव स्वास्थ्य एवं स्वभाव पर पड़ने वाले प्रभाव का मूर्धन्य विज्ञानियों ने गहन अध्ययन किया है और पाया है कि ठण्डे क्षेत्रों में प्रकृति के साहचर्य में रहने वाले व्यक्ति अपेक्षाकृत अधिक श्रमशील, सहनशील, बहादुर तथा आत्मनिर्भर होते हैं। उनकी सृजनात्मक क्षमता बढ़ी चढ़ी होती है। इसके विपरीत गर्म जलवायु में निवासरत व्यक्तियों का स्वास्थ्य दुर्बल एवं उत्साह शिथिल होता है। सुविधा-साधनों की अधिकता रहते हुए भी ऐसे क्षेत्रों के बच्चे निरुत्साही तथा स्वभाव से चिड़चिड़े देखे गये हैं। कनाडा के ठण्डी जलवायु में निवास करने वाले उत्कू एस्किमो के संबंध में उनका कहना है कि वातावरण के प्रभाव के कारण उनके बच्चे 6 वर्ष की उम्र से ही संवेदनशील बन जाते हैं। उनकी प्रसन्नता-प्रफुल्लता सहिष्णुता देखते ही बनती है। अभिभावक या माता-पिता शान्त स्वभाव के होते हैं, जिसका अनुकूल प्रभाव बच्चों पर भी पड़े बिना नहीं रहता।

केन्या की गूजी जातियाँ अधिकतर अपना समय घर के बाहर गरमी वाले क्षेत्रों में व्यतीत करती हैं। उनमें भावनात्मक एकात्मकता एवं रचनात्मक प्रवृत्ति का प्रायः अभाव पाया जाता है। अनुसंधानकर्ता विशेषज्ञों का कहना है कि गरमी के कारण वे सदैव तनाव एवं आवेश से ग्रस्त रहते हैं और लड़ते-झगड़ते रहते हैं। पुलिस-आँकड़े भी बताते हैं कि ठण्डे क्षेत्रों की अपेक्षा गरमी वाले क्षेत्रों में अपराध अधिक होते हैं। मनोविज्ञानी भी जलवायु को मनुष्य की शारीरिक-मानसिक शक्ति को उत्तेजित करने में सहायक मानते हैं। उनके अनुसार जिन योरोपीय देशों ने अपने देश के शीतलता वाले क्षेत्रों में व्यवसायिक एवं औद्योगिक इकाइयाँ खड़ी की और आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न बने, वहाँ भी वातावरण में काफी गरमी बढ़ जाने के फलस्वरूप जन मानस में अपराधी वृत्ति बढ़ी है।

स्वास्थ्य विज्ञानियों के अनुसार वर्षा के दिनों में जब कभी आकाश में इन्द्र धनुष दिखाई देता है तो सूर्य की किरणें भिन्न-भिन्न रंगों को पार करती हुई दृष्टिगोचर होती हैं। मानव मस्तिष्क पर उनका गहरा प्रभाव पड़ता है। शरीर में हार्मोन रसायनों की वृद्धि होती है और उत्साह उमगता है।

अभी तक हमने केवल जलवायु के प्रभाव का अध्ययन जीव विज्ञान के आधार पर किया है और माना है कि गरमी वाले क्षेत्रों में कँपकँपी सहते हुए असाधारण वातावरण को सह सकते हैं। इन्हीं उत्तर चढ़ावों की प्रतिक्रिया को झेलने के लिए असीम सुविधा साधन भी जुटा लिये गये हैं, फिर भी उक्त वातावरण के अनुसार हमारा स्वभाव एवं व्यवहार वैसा बन ही जाता है। कभी-कभी तो वातावरण परिवर्तन का दुर्बलों पर विशेष एवं बलिष्ठों पर कम प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। कई बार यह प्रतिकूलता शारीरिक और मानसिक दृष्टि से बहुत कष्टकारक होती है। अमेरिकी वैज्ञानिक विशेषज्ञों ने इसका उपाय बताते हुए कहा है कि हर मौसम में प्रातः काल ठण्डे पानी से स्नान करने की आदत यदि डाली जा सके तो इससे इतनी सहनशक्ति पैदा हो जाती है कि जलवायु परिवर्तन के विपरीत प्रभाव से आसानी से बचा जा सकता है।

यदि किसी का आजीविका उपार्जन हेतु कार्य क्षेत्र घने शहरों, आग उगलते कारखानों शोरगुल, घिचपिच या सड़न भरा है, तब तो उसे बदलना ही चाहिए। काम करने के लिए कुछ घंटे ऐसे गरम क्षेत्र में रहना पड़े तो भी प्रयत्न करना चाहिए कि रात्रि बिताने के लिए, बच्चों को खेलने के लिए हरा−भरा, पानी की बहुलता वाला ग्रामीण क्षेत्र ही चुना जाय। भले ही उसमें आने-जाने की कठिनाई ही क्यों न उठानी पड़े। जिनका कारोबार शीतल क्षेत्र में है, उन्हें तो भाग्यवान ही कहना चाहिए।


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