इक्कीसवीं सदी की एक रूपरेखा

July 1990

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आजकल विज्ञान की एक नई शाख का विकास हुआ है-”फ्यूचरालॉजी-भविष्य विज्ञान” जिसके आधार पर वर्तमान की परिस्थितियों का अध्ययन-विश्लेषण कर भविष्य का अनुमान लगाया जाता है। यह सही है कि वर्तमान के आधार पर भविष्य का थोड़ा-बहुत अनुमान लगाया जा सकता है। कोई व्यक्ति यदि आज बुरे कार्य में संलग्न है, तो उसे देख कर यह तर्क दिया जा सकता है कि उसका आने वाला समय खराब होगा, पर कई बार अनुमान गलत भी हो जाता है। समय से पूर्व यदि वह अपनी गलतियों को सुधार ले, तो उसका भविष्य ऐसा बनता है, जिस पर प्रसन्नता व्यक्त की जा सके।

कुछ ऐसे ही विचार आने वाले समय के बारे में प्रकट किये हैं न्यूयार्क (अमेरिका) के हडसन इन्स्टीट्यूट के भविष्य विज्ञानियों ने। इन्स्टीट्यूट के निदेशक हरमन कान्ह अपने सहयोगी एन्थोनीविनर के साथ कृषि एवं खाद्य संकट के समाधान के रूप में लिखते हैं कि सन् दो हजार के पहले वाली दशाब्दी में मनुष्य अपनी गलतियों को समझ जायेगा और सुधारने के लिए तेजी से प्रयास करेगा इसके अंतर्गत लोगों की रुचि औद्योगिक उत्पादन की अपेक्षा खेती करने एवं वृक्षारोपण करने की होगी। वृक्ष को खाद पानी एवं सुरक्षा देकर बड़ा करना लोग अपना व्यक्तिगत दायित्व मानेंगे। इसी को धार्मिक व्यक्ति पुण्य परमार्थ मानेंगे और ऋद्धि सिद्धियों से सम्पन्न होने की सही कसौटी मानी जाएगी कि कौन कितना विश्व वसुधा को संतुलित करने एवं विनाश से बचाने के लिए प्रयासरत रहा। अनेकों संश्लेषित खाद्य पदार्थों एवं पेय पदार्थों का विकास होगा जो मूलतः प्राकृतिक पदार्थ रहेंगे। आज के उद्योगों के विकल्प में मनुष्य ऐसी विद्या खोजने में समर्थ हो जायेगा, जिसका कोई भी विनाशकारी परिणाम उत्पन्न न हो।

वे ऊर्जा संकट के बारे में लिखते हैं कि जीवाश्म ईंधन स्रोत (कोयला, पेट्रोल, डीजल) समाप्त होने के पहले मानव जाति सूर्य एवं भू तापीय शक्ति को ऊर्जा स्रोत के रूप में बदल देने में समर्थ हो जाएगी और यह ऊर्जा प्राप्ति का सरल एवं सीधा माध्यम बनेगा। सच्चे अर्थों में भौतिक क्षेत्र में उपलब्धि का केन्द्र सूर्य ही होगा। अणु परमाणु का उपयोग वैज्ञानिक वर्ग विनाश के लिए नहीं, अपितु विकास कार्यों में करेंगे जिसका केन्द्र बिन्दु होगा न्यूक्लियर शक्ति का शांतिपूर्वक उपयोग ऊर्जा की उत्पादन।

मनुष्य शरीर के जैविक विकास के संबंध में उनकी मान्यता है कि मानव समाज धीरे-धीरे एक नई प्रजाति की ओर बढ़ रहा है जो सन् 2001 तक अपने चमत्कारी रूप में सामने आयेगा। वंशानुक्रम के परिवर्तन को लोग आश्चर्य की दृष्टि से देखेंगे, जिसकी रुचि भौतिकवाद की ओर न होकर आध्यात्म की ओर होगी। स्वस्थ रहने के नये तरीके वजन घटाने के लिए प्राकृतिक माध्यम स्वप्नों का सदुपयोग मनुष्य के अंग अवयवों का प्रतिरूप जो संकट में काम आ सके तथा वैचारिक आदान-प्रदान का मस्तिष्कीय तरंगों द्वारा प्रयोग, जिससे लोग आध्यात्म की ओर रुचि रखने लगेंगे। जनसंख्या अभिवृद्धि को रोकने के लिए संयम-नियम से जन्म दर को रोकने की नई एवं प्राचीन विद्या के प्रति विश्वास उत्पन्न होगा।

समूचा विश्व एक परिवार के रूप में विकसित होगा तब अपराधियों की संख्या स्वयं ही कम हो जायेगा। भ्रातृभावना जन-जन के मनों को आन्दोलित करेगी और बाध्य करेगी कि वह न अनीति बरते और नहीं इसे समर्थन दे। ब्राह्मणत्व पुनर्जीवित होगा, उसका एक ही आधार रहेगा कि किसने अपनी आवश्यकता को कम किया और कर साधनों में निर्वाह किया।

सभी राष्ट्र एक होकर जल एवं वायु प्रदूषण के लिए सामूहिक उपचार की बात सोचेंगे, क्योंकि इन दोनों का प्रदूषण किस न किसी रूप में समूचे विश्व को प्रभावित करेगा। इस प्रकार भौगोलिक सीमा बन्धन न रहेगा और सभी राष्ट्र अपनी-अपनी समस्याओं का एक साथ मिल बैठ कर समाधान सोचेंगे, तब एक विश्व एवं उसकी एक व्यवस्था की कल्पना साकार हो जायेगा। यह वही समय होगा, जिसे भविष्य वक्ताओं ने “इक्कीसवीं सदी बनाम उज्ज्वल भविष्य” का सम्बोधन दिया है।


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