प्रसिद्ध दार्शनिक डायोजनीज से जब सिकन्दर महान मिलने गये तो संत डायोजनीज धूप में लेटे हुए थे। सम्राट ने उन्हें नम्र स्वर में संबोधित किया और पूछा “मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ?” सिर्फ मेरी धूप छोड़ दो” संत डायोजनीज ने उत्तर दिया। यह उत्तर सुन कर सिकन्दर आश्चर्य से स्तंभित रह गया। उसके दरबारी साथी उक्त दार्शनिक को एक मूर्ख कह कर हँसी उड़ाने लगे तो सिकन्दर ने कहा “ यदि मैं सिकन्दर न होता, तो चाहता कि मैं डायोजिनीज बन जाऊँ।”