कामुकता की कुदृष्टि

July 1990

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प्रकृति ने प्राणियों में से मात्र मादा को ही यह क्षमता प्रदान की है कि जब उसकी शारीरिक शक्ति नया शिशु उत्पन्न करने की हो, तो ही वह नर को कामुक संदेश दे और वह उस आदेश का पालन करने में रुचि दिखाये। अपनी ओर से प्राणि जगत का कोई भी नर-नारी के साथ किसी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं करता है। दोनों वर्ग इस प्रकार साथ-साथ रहते और संयत जीवन जीते हैं जिसमें नारी और नर-बिना किसी प्रकार की उत्तेजना का परिचय दिये स्वाभाविक जीवन जीते हैं। नर को कामुकता प्रदर्शन करने की ऐसी छूट बिल्कुल भी नहीं मिली है कि वह मादा के आदेश या संकेत के बिना किसी प्रकार की अनुपयुक्त छेड़छाड़ करे। अपनी ओर से प्रथम कदम उठाये।

बच्चे को बहुत दिनों तक दूध की आवश्यकता होती है। जब वह साधारण आहार खाने और पचाने योग्य हो जाता है, तब कहीं मादा की स्थिति ऐसी बनती है कि वह नया बालक उत्पन्न करने सँभालने की अपनी क्षमता का परिचय दे और वैसा संकेत करे। मनुष्यों की यह नासमझी ही है कि पशुओं की संतानों को जितने दिनों तक जितनी मात्रा में दूध मिलने की सहज आवश्यकता रहती है, उससे कहीं पहले वे उस बच्चे को उसके स्वाभाविक आहार से वंचित करके उसकी खुराक को झपटने-हड़पने लगते हैं। यदि ऐसा न किया जाय तो पशुओं के बालक कई वर्ष तक माता के दूध पर निर्भर रहकर अपने शारीरिक विकास को परिपोषित करते रह सकते हैं। पर जब उनकी प्रकृति प्रदत्त खुराक को मनुष्यों द्वारा दुह लिया जाता है तो बच्चों का अविकसित रह जाना तो स्वाभाविक है ही; साथ ही अत्याधिक दबाव से मादा के प्रजनन अंग भी समय से पूर्व विकसित होने लगते हैं। फिर वे जोड़ा मिलाते हैं और जननी पैदा करने की प्रक्रिया से अपनी पीढ़ियाँ दुर्बल बनाती है। दूध सभी का स्वाभाविक भोजन है। जब तक बच्चा माँ के दूध पर निर्भर रहता है। यदि इस नियम का सर्वत्र पालन होने लगे तो संतान वृद्धि की वैसी समस्या उत्पन्न न हो, जैसी कि मनुष्य और पशुओं में देखी जा रही है। उनकी बढ़ती हुई वंशवृद्धि के कारण अनेकों समस्याएँ पैदा हो गयी हैं व उनकी जड़ कामुकता ही है।

नारी के साथ यदि अतिरिक्त छेड़खानी न की जाय तो वह पहला बच्चा चार-पाँच वर्ष का होने से पूर्व शारीरिक दृष्टि से इस तरह कमजोर न बने कि वह संतान की ठीक तरह साज संभाल करने के अनुपयुक्त ही बन जाए। ऐसा क्रम चल पड़ा तो महिलाओं को आये दिन दुर्बलता और रुग्णता से छुटकारा मिल सकेगा;

बच्चा और जननी दोनों को स्वस्थ रखना हो तो यह आवश्यक है कि दो प्रसवों के मध्य लम्बा समय हो। पिता का स्वास्थ्य, दायित्व और व्यवस्था, आर्थिक देखभाल, सुसंस्कृत बनाने के अवसर इसी आधार पर मिलता है। जल्दी बच्चे न हों, इसके लिए अनेक समाधानों की जानकारी अब सर्व सुलभ होती जा रही है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण यह है कि पुरुष नारी के प्रति कामुकता की दृष्टि न रखे। उसे मात्र अपनी सहचरी समझे। कामुकता के विचार ही मस्तिष्क को खराब करते हैं और यौनाचार के लिए प्रेरित करते हैं। इसलिए नर और नारी के बीच स्नेह-सहयोग तो घनिष्ठ रहना चाहिए, पर साथ ही यह ध्यान भी रखना चाहिए कि कामुकता का दृष्टि का सीमा से बाहर हो जाना नर, नारी और बच्चे इन सभी के लिए समान रूप से हानिकारक है। इस व्यवधान को खड़ा कर देने के कार तीनों ही घाटे में रहते है और साथ ही समूल समाज को हानि पहुँचाते हैं।

शारीरिक और मानसिक स्वस्थता एवं समर्थता के प्रति जिनकी भी रुचि है, उन्हें इस तथ्य को स्मरण रखना चाहिए कि जिस कर्म से हर प्रकार हानि ही हानि हो, सबका अहित ही अहित हो उससे जितना बचा जा सके, उतना ही अच्छा है। कामुकता की कुदृष्टि को यदि मस्तिष्क को हटाया और व्यवहार से मिटाया जा सके तो इसमें हर किसी का हर प्रकार से हित साधन ही है


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