अपने दीपक स्वयं बनें

July 1990

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भगवान बुद्ध का कथन है-”अप्पदीपो भव” अर्थात् अपना दीपक आप बनो। वे आत्म विश्वास को बहुत महत्व देते थे। धर्मचक्र प्रवर्तन की प्रचार यात्रा में शिष्यों को इसकी महत्ता समझाते हुए वह कहते थे “आज अथवा मेरी मृत्यु के पश्चात् वे लोग जो अपने आप से प्रकाश ग्रहण करेंगे, आत्मनिर्भर होकर अपने आप पर विश्वास करेंगे, सत्य को अपना दीपक मानकर उसे दृढ़तापूर्वक धारण करेंगे और सत्य में ही अपने मोक्ष की खोज करेंगे, उन्हें किसी बाहरी सहायता की आवश्यकता न पड़ेंगे। ज्ञान प्राप्ति की अभीप्सा रखने वाले वे ही लोग उच्चतम स्थिति को प्राप्त कर सकेंगे, जिनके हृदय आत्मविश्वास से भरे होंगे। दूसरों का नेतृत्व भी ऐसे ही व्यक्तित्व कर सकेंगे, जिनमें आत्मविश्वास कूट-कूट कर भरा होगा।”

जिसे अपनी योग्यता, क्षमता और सामर्थ्य पर विश्वास होता है, विजय श्री भी उसे ही वरण करती है। जीवन की प्रत्येक सफलता इसी एक केन्द्र के चहुँ ओर चक्कर काटती है। दृढ़ निश्चयी ही आगे बढ़ते ऊँचा उठते और उच्चस्तरीय सफलताएँ अर्जित करते हैं। जिन्हें स्वयं की क्षमता पर विश्वास नहीं, दूसरे लोग भी उन पर विश्वास नहीं करते। ऐसे व्यक्ति संशय और दुविधा के दलदल में फँसकर छटपटाते भर रहते हैं। साथी सहयोगी भी उनका साथ छोड़ जाते हैं।

गीताकार ने इसी तरह की मनःस्थिति वाले मनुष्यों के लिए-’संशयात्मा विनष्याति” कहकर संवर्धन किया है। घड़ी के पेन्डुलम की तरह दोलनयुक्त अनिश्चयात्मक मनःस्थिति व्यक्ति को कहीं का नहीं रहने देती। वह कभी आगे बढ़ता है तो कभी दो कदम पीछे खिसकता है। इसके विपरीत दृढ़ विश्वास वाला व्यक्ति जो निश्चय कर लेता है, उसे पूरा करके ही छोड़ता है। भले ही उसके कर्म में कितने ही अवरोध चट्टान बन कर अड़ क्यों न रहे हों। उनका प्रभावशाली व्यक्तित्व संपर्क में आने वालों में भी प्राण फूँक देता है और वे अनायास ही उसके मित्र सहायक बनते चले जाते हैं ड़ड़ड़ड़ड़ मनीषी जेम्सएलेन का इस सम्बन्ध में यह कथन उपयुक्त ही है कि जिनके व्यक्तित्व से विश्वास और मस्तिष्क से श्रेष्ठता के भाव टपक रहे होंगे, सफलता उन्हें ही मिलेगी।

सुप्रसिद्ध मनीषी स्वेटमॉर्डन कहते हैं कि दूसरों का सफल मार्गदर्शन प्रतिभा के धनी आत्मविश्वासी व्यक्ति ही कर सकते हैं। जो स्वयं प्रज्ज्वलित नहीं, वह दूसरों को प्रकाशित कैसे कर सकता है। उनके अनुसार यदि हम दूसरे के प्रकाश पर निर्भर रहेंगे तो हो सकता है कि अंधकार हमें अभिभूत कर ले। यदि ऐसा नहीं चाहते तो स्वयं को प्रज्ज्वलित करना होगा। यह हो सकता है कि हम दूसरों से प्रकाश ग्रहण करके उस प्रकाश की परम्परा को आगे बढ़ायें, परन्तु अपने दीपक को उपेक्षापूर्वक जंग लगते रहने देना और केवल दूसरों के प्रकाश को पर्याप्त मान लेना अन्ततोगत्वा हमें अन्धकार के गर्त में गिरा देगा। अपना आन्तरिक आत्मविश्वास ही वह प्रकाश है, जो कभी साथ नहीं छोड़ता, धोखा नहीं देता। आत्मविश्वास से बढ़कर इस संसार में और कोई दूसरी शक्ति है नहीं आत्मविश्वासी के सामने दुनिया की कोई बाधा टिक नहीं सकती और न ही वह कभी किसी से हार मानता है।

आत्मविश्वास के चमत्कारिक प्रभाव से इतिहास के पन्ने भरे पड़े है। ‘स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है, का उद्घोष करने वाले लोकमान्य तिलक का वह आत्मविश्वास ही था जिसने समूचे देशवासियों को स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ने के लिए झकझोर कर रख दिया था। महात्मा गान्धी का आत्मविश्वास ही था जिनके अहिंसात्मक आन्दोलन ने सदियों से परतंत्र बने भारत को अंग्रेजों से मुक्त करा लिया। अब्राहम लिंकन एवं हैरियट स्टो के आत्म विश्वास ने हजारों वर्ष पुरानी दास प्रथा को अमेरिका से सदा के लिए जड़ से उखाड़ फेंका। महाभारत की वह कथा प्रसिद्ध है जिसमें कुरुक्षेत्र की रणभूमि में अर्जुन अपना आत्मविश्वास खो बैठा था और गाण्डीव को एक ओर रखकर भयभीत बना रथ के एक कोने में जा बैठा था। तब कृष्ण ने उसके हृदय में आत्मविश्वास भरा और उसकी परिणति पाण्डवों की विजय एवं महान भारत के अभ्युदय के रूप में हुई थी। हनुमान के प्रसुप्त पड़े आत्मबल को जामवन्त ने जगाया था और उसका परिणाम समुद्र लाँघने, लंका का विध्वंस कर सीता वापसी एवं राम राज्य की स्थापना के रूप में सामने आया था। प्रगति पथ पर अग्रसर होने के लिए पग-पग पर आत्मविश्वास की आवश्यकता पड़ती है। इसके अभाव में सफलता संदिग्ध ही बनी रहती है।


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