दुर्भाग्य का ही भान (Kahani)

August 1988

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दरिद्र कौन है और सम्पन्न कौन? इसकी किसी सत्संग में दार्शनिक चर्चा चल रही थी।

एक वरिष्ठ ज्ञानी समझा रहे थे कि जो अपने से सम्पन्नों के साथ अपनी तुलना करता है उसे अभाव और दुर्भाग्य का ही भान होता रहता है। पर जो अपने से गये गुजरों के साथ तुलना करते हैं उन्हें अपने पास इतने साधन दिखते हैं जिनके लिए लाखों तरसते हैं।


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