उपयुक्त साहस किया (Kahani)

August 1988

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फ्राँस के राजा लुई पर क्रान्तिकारी परिषद के सामने मुकदमा चल रहा था। मुकदमा नाम पात्र का था। लुई और उसके स्त्री बच्चों को मृत्यु के दंड देने का फैसला पहले ही हो चुका था।

राजा का कसूर भी हो सकता था, पर उनके स्त्री बच्चे सर्वथा निर्दोष थे। उनका शासन में काई योगदान या हस्तक्षेप नहीं था, फिर उन्हें मृत्यु दंड जैसी सजा किस कारण मिले।

जब मुकदमा चल ही रहा था, भले ही वह नाटक हो रहा था, पर लुई के परिवार ने उस मुकदमे में अपने बयान देने और पैरवी करने का निश्चय किया।

तलाश किया तो कोई वकील तैयार न हुआ। राजा की वकालत करना अपनी जान के लिए मुसीबत मोल लेना था। उन दिनों मृत्यु दंड सामान्य बात थी। राजभक्त होने के संदेह तक में जान जा सकती थी। राज्यकोष पहले ही जब्त हो चुका था। फीस के नाम पर कुछ मिलना न था। ऐसे मुकदमे की वकालत कौन करता?

पूरी तलाश करने के बाद एक वकील तैयार हुआ-लौगार्ड। वह उसके परिणाम जानता था तो भी अपने पेशे के प्रति ईमानदार रहने के कारण उसने पुरा जोखिम उठाते हुए मुकदमे की पैरवी करने का निश्चय किया। स्त्री-बच्चों को निर्दोष सिद्ध करने में उसने कुछ कमी न रहने दी। मुकदमा नाटक मात्र था। पूरे परिवार को मृत्यु दंड मिला।

रानी को इस बात का संतोष था कि कम से कम एक वकील पैरवी करने का साहस तो कर सका।

वकालत की फीस क्या दें? रानी ने अपना निजी बटुआ लौगार्ड के हाथ पर रख दिया।

देखने वालों ने समझा कि अपने पद के अनुरूप और खतरे को समझते हुए उपयुक्त फीस बटुए में दी होगी।

बटुआ सबके सामने खोला गया। उसमें रानी के बालों की लट थी और कृतज्ञता से भरे हुए आँसू।

लौगार्ड ने उसे संभाल कर रख लिया। पेशे की पवित्रा की रक्षा करने की दृष्टि से उसने उपयुक्त साहस किया और बदले में उपयुक्त उपहार भी पाया। पैसे की दृष्टि से रानी पहले ही खाली हाथ हो चुकी थी।


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