सेवा भाव (Kahani)

August 1988

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एक घर में बरों ने कुछ छत्ते लगाये। साथ ही एक मधुमक्खी का भी छत्ता था।

बरें जहाँ भी छत्ता लगाती। वही सेवा तो दिया जाता। किन्तु मधुमक्खियों के लिए पानी का प्रबंध करते और उनके लिए फूल उगाते।

बरें और मधुमक्खियाँ बैठ कर विचार करने लगी और इस भेदभाव के लिए मनुष्यों को कोसने लगी।

मधुमक्खियों ने कहा-हम परिश्रम करते और मनुष्यों के लिए शहद जुटाते हैं। तुम भी यदि ऐसा कर सकती तो तुम्हारा भी स्वागत होता।

सेवा भावी ही सम्मान और सहयोग प्राप्त करते हैं।


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