चन्दन का कोयला तो न बनायें

August 1988

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एक राजा वन विहार के लिए गया। शिकार का पीछा करते-करते राह भटक गया। घने जंगल में जा पहुँचा। रास्ता साफ नहीं दीख पड़ता था। साथी कोई रहा नहीं। रात हो गई। जंगल के हिंसक पशु दहाड़ने लगे। राजा डरा और रात्रि बिताने के लिए किसी आश्रय की तलाश करने लगा।

ऊँचे पेड़ पर चढ़कर देखा तो उत्तर दिशा में किसी झोंपड़ी में दीपक जलता दिखाई दिया। राजा उसी दिशा में चल पड़ा और किसी वनवासी की झोपड़ी में जा पहुँचा।

अपने को एक राह भूला पथिक बताते हुए राजा ने उस व्यक्ति से एक रात निवास कर लेने देने की प्रार्थना की। वनवासी उदार मन वाला था। उसने प्रसन्नता पूर्वक ठहराया और घर में जो कुछ खाने को था, देकर उसकी भूख बुझाई। स्वयं जमीन पर सोया और अतिथि को आराम से नींद लेने के लिए अपनी चारपाई दे दी।

राजा ने भूख बुझाई। थकान मिटाई और गहरी नींद सोया। वनवासी की उदारता पर उसका मन बहुत प्रसन्न था। सवेरा होने पर उस वनवासी ने सही रास्ते पर छोड़ आने के लिए साथ चलने की भी सहायता की।

दोनों एक दूसरे से विलग होने लगे। तो राजा को उस एक दिन के गान और आतिथ्य का बदला चुकाने का मन आया। परन्तु क्या दे? कुछ दे भी तो उस एकान्तवासी पर चोर रहने क्यों देंगे? इसलिए ऐसी भेंट देनी चाहिए जिसके चोरी होने का डर भी नहीं और आवश्यकतानुसार उसमें से आवश्यक राशि उपलब्ध होती रहे।

उसी जंगल में राजा का एक विशाल चंदन उद्यान था। उसमें बढ़िया चंदन के सैकड़ों पेड़ थे। राजा ने अपना पूरा परिचय वनवासी को दिया और अपने हाथ से लिखकर उसे चंदन उद्यान का स्वामी बना दिया। दोनों संतोष पूर्वक अपने-अपने घर चले गये।

वनवासी लकड़ी बेचकर गुजारा करता था। इसने लकड़ी का कोयला बना कर बेचने में कम श्रम पड़ने तथा अधिक पैसा मिलने की जानकारी प्राप्त कर ली थी। वही रीति-नीति अपनायी। पेड़ अच्छे और बड़े थे। आसानी से कोयला बनने लगा। उसने एक के बजाय दो फेरी निकट के नगर में लगानी आरंभ कर दी ताकि दूनी आमदनी होने लगे। वनवासी बहुत प्रसन्न था। अधिक पैसा मिल जाने पर उसने अधिक सुविधा सामग्री खरीदनी आरम्भ कर दी और अधिक शौक मौज से रहने लगा।

दो वर्ष में चन्दन का प्रायः पूरा उद्यान कोयला बन गया। एक ही पेड़ बचा। एक दिन वर्षा होने से कोयला तो न बन सका। कुछ प्राप्त करने के लिए पेड़ से एक डाली काटी और उसे ही लेकर नगर गया। लकड़ी में से भारी सुगंध आ रही थी। खरीददारों ने समझ लिया चह चंदन है। कोयले की तुलना में दस गुना अधिक पैसा मिला। सभी उस लकड़ी की माँग करने लगे। कहा कि- “भीगी लकड़ी के कुछ कम दाम मिले हैं। सूखी होने पर उसकी और भी अधिक कीमत देंगे।

वन वासी पैसे लेकर लौटा और मन ही मन विचार करने लगा। यह लकड़ी तो बहुत कीमती है। मैंने इसके कोयले बनाकर बेचने की भारी भूल की, यदि लकड़ी काटता बेचता रहता तो कितना धनाढ्य बन जाता और इतनी सम्पदा इकट्ठी कर लेता जो पीढ़ियों तक काम देती।

राजा के पास जाने व पुनः याचना कर अपनी मूर्खता दर्शाने में कोई सार न था। शरीर भी बुड्ढा हो गया था। कुछ अधिक पुरुषार्थ करने का उत्साह नहीं था। झाड़ियाँ काटकर कोयले बनाने और पेट पालने की वही पुरानी प्रक्रिया अपना ली और जैसे-तैसे गुजारा करने लगा।

मनुष्य जीवन चंदन उद्यान है इसकी एक-एक टहनी असाधारण मूल्यवान है। जो इसका सदुपयोग कर सकें, वे धन्य होंगे, जिनने प्रमाद बरता वे वनवासी की तरह पछतायेंगे।


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