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Akhand Jyoti
Year 1988
Version 2
प्रभु-दर्शन (Kavita)
प्रभु-दर्शन (Kavita)
August 1988
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Page Titles
सफलता पानी हो तो श्रमसीकर बहाएँ
चन्दन का कोयला तो न बनायें
Quotation
परमाणुशक्ति से बढ़ कर है आत्मसत्ता
सामर्थ्य-सम्पदा से भरा पूरा मानवी अन्तराल
दुर्भाग्य का ही भान (Kahani)
कारण शरीर की विशिष्टता-भाव श्रद्धा
लोक मंगल हेतु सर्वस्व अर्पण
मृत्यु के बाद भी है जीवन
तपस्वी मुद्रा बदली (Kahani)
आत्म शक्ति का संवर्धन एवं प्राण योग
राष्ट्र की समर्थता (Kahani)
निर्मल मन सो मोह अति भावा”
उपयुक्त साहस किया (Kahani)
भविष्य कथन कितना सच कितना झूठ?
व्यवहार में सदाशयता (Kahani)
मुसकराइये व्यक्तित्व को निखारिये!
नियुक्त पत्र वापस ले लिया (Kahani)
तर्कों की भाषा से परे है ईश्वर की सत्ता
कण कण में निहित है अनुशासन एवं एकत्व
सुगन्ध के रूप में परिलक्षित (Kahani)
जड़ों तक पहुँचने पर ही सही-उपचार सम्भव
कश्मीर को स्वर्ग बनाने वाला (Kahani)
उपयुक्त वातावरण ढूंढ़ें,अथवा बनायें.
दर्शन साध्य है तो विज्ञान साधन
र्जनों को आश्रय तो न देते (Kahani)
सर्वनाश की दिशा में बढ़ता मानव समुदाय।
“योग”.... बाजीगरी नहीं वरन् उच्चस्तरीय पुरुषार्थ है।
विलासताओं का आकर्षण (Kahani)
मनोनिग्रह से सम्भव है अतीन्द्रिय क्षमताओं का विकास
परमानन्द का श्रोत, अपने निज के अन्तराल में
ग्रंथिभेद एक समग्र साधना
Quotation
सफलता आपका जन्म सिद्ध अधिकार है!
अन्धविश्वासी भक्त (Kahani)
कैसे बदलेगा मानव जाति का भविष्य
उत्तर देते न बन पड़ा (Kahani)
भूतकाल को भुलाया जाय.
ऊँट ने आवाज दी (Kahani)
विचार संप्रेषण बिना माध्यम के भी सम्भव
असुरों को परास्त किया (Kahani)
प्रतिकूलताओं में हड़बड़ाएं नहीं।
कष्ट और कलह न रह जायें (Kahani)
पिण्ड में निहित शक्ति का-भण्डार
विचार तंत्र सुव्यवस्थित रहें
सच्ची भगवद् भक्ति (Kahani)
क्रिया कलापों का विस्तारः केन्द्र के समाचार
स्वास्थ्य रक्षा हेतु- उपवास की अनिवार्यता
उसे खारी बना दिया (Kahani)
पुण्य की सही परिभाषा
सेवा भाव (Kahani)
अपनों से अपनी बात - स्वास्थ्य संरक्षण के क्षेत्र में एक अभिनव प्रयोग
प्रभु-दर्शन (Kavita)
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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