स्वास्थ्य रक्षा हेतु- उपवास की अनिवार्यता

August 1988

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किसी निश्चित संकल्प का मन में रखकर जब हम थोड़े समय तक अन्न इत्यादि का खाना छोड़ देते है तो उसे ही उपवास कहा जाता है। उपवास के लक्ष्य अनेक हो सकते है। उदाहरणार्थ रोगों को निवारण के लिए, मानसिक शान्ति के लिए, इच्छानुसार वस्तु पाने के लिए, किसी के कल्याण के लिए इत्यादि। इन सभी लक्ष्यों में सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य शरीर भौतिक सुख सम्पदाएँ हो और हमारे शरीर में पीड़ा उठती है रहे तो हमारा मस्तिष्क उद्विग्न हो उठता है और मन एक दम अशान्त हो जाता है। जब मन अशान्त रहेगा तो “ अशान्तस्य कुतों सुख” (अर्थात् अशाँत व्यक्ति को सुख नहीं उठती। ऐसे समय में तो महान् मनोबल वाला व्यक्ति ही शान्त रह सकता है।

हमारे शरीर के विभिन्न रोगों में आँख, नाक, कान जिह्वा, त्वचा, हाथ’पैर आदि सम्बन्धी रोग आते है। इन रोगों के निवारण में उपवास भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कुछ पाश्चात्य चिकित्सकों का निर्णय अब प्रकाश में आ रहा है। उनमें इस बात का बड़े जोरों से समर्थन है कि लाख रुपये की गोलियों खाने से जितना लाभ होता है उनका लाभ थोड़े समय उपवास कर लेने से ही प्राप्त हो जाता है।

उपवास के समय शरीर का शोधन होने लगता है। हमारे शरीर में जो विजातीय जीवाणु उत्पन्न हो जाते है वे जीवाणु रोगाणु हमारे भोजन में से ही भोजन लेना प्रारंभ कर देते है और इन जीवाणुओं में से अधिकतर जीवाणु ऐसे होते है जो बिना भोजन के देर तक जीवित नहीं रह सकते। अतः यदि उपवास की लिया जाय तो वे समाप्त होना प्रारंभ कर देते है। इसके अतिरिक्त हमारे आमाशय की कार्यक्षमता भी बढ़ने लगती है। इंजन लगातार काम करता रहे तो उसकी कार्यक्षमता क्षीण होने लगती है।घोड़ा लगातार दौड़ता रहे, मजदूर लगातार काम करता रहे तो थोड़े ही दिनों में हम अनुभव करेंगे कि हमारा कार्य उतना ही हो पा रहा है जितने की हमको आशा थी। अतः पुनः कार्य को सुचारु रूप से चलने के लिये थोड़ा विश्राम लेना आवश्यक है। आमाशय पर भी यही बात लागू होती है। एक दिन भी उपवास किया जाय तो उसकी कार्यक्षमता में वृद्धि हो सकती है और पेट के रोगों से अनायास ही मुक्ति पायी जा सकती है।

अपनी रुचि के अनुसार कभी भी उचित क्रम के अनुसार उपवास किया जा सकता है उचित का अर्थ है उम्र, शरीर का वजन तथा आहार को देखकर ही उपवास करने चाहिए जो व्यक्ति सदैव संतुलित आहार ही लेता है उसे उपवास करने की इतनी आवश्यकता नहीं होती जितना कि गरिष्ठ भोजन करने वाले की आवश्यकता होती है। चर्बी और अधिक प्रोटीन वाले पदार्थ खाने वालों के लिये तो यह नितान्त आवश्यक है। उपवास को अनेकों ढंगों से निभाया जाता है। जैसे एक समय भोजन कर लिया तो दूसरे समय भोजन न करें। इसे एकाहार कहते हैं। दूसरा दोनों समय भोजन तो किया जाय परन्तु भर पेट न किया जाय आधा पेट ही भोजन करें। तीसरे में केवल फल या दूध या छाछ पीकर फलों का रस पीकर ही रहें। चौथे में अपने भोजन में किसी वस्तु की कमी कर ले, जैसे दाल में नमक या हल्दी न डालें, तरकारी में मसाला न डालकर केवल उबालकर ही ले। पाँचवे प्रकार में दिन भर जल केवल पीकर ही समय काट ले। इस प्रकार कई भाग किये जा सकते है। इनमें से जिनको जैसा पसन्द आये उस प्रकार के उपवास का पालन अवश्य कर लेना चाहिए। यदि इसे नियमपूर्वक कर ले तो रोगों का आक्रमण कभी-कभी नहीं होगा यह सुनिश्चित है।

हमें मन करने से शरीर अवश्य निकाल देनी चाहिए कि उपवास करने से शरीर कमजोर हो जायगा। यह उपवास तो कमरे में झाडू लगाकर सफाई करने के समान है उपवास से भी पेट व पाचन संस्थान की इसी प्रकार सफाई होती है और शरीर सदैव स्वस्थ रहता है। इसके आध्यात्मिक लाभ तो अपनी जगह है ही,


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