अन्धविश्वासी भक्त (Kahani)

August 1988

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एक गाड़ीवान हनुमान जी का बड़ा भक्त था। नित्य उनके मन्दिर में दर्शन को जाता और वहीं बैठकर हनुमान चालीसा का पाठ करता। ताकि हनुमान जी आपने कान से उसे सुन ले और यह मान लें कि भक्त जब इतनी प्रशंसा करता है तो अवश्य ही यह गहरा भक्तिभाव रखता होगा।

एक दिन गाड़ीवान अपनी गाड़ी लेकर कहीं दूर गाँव जा रहा था। रास्ते में एक जगह भारी कीचड़ भरी हुई थी। पहिये उसमें फंस गये। बैल उसे खींच नहीं पा रहे थे। वह स्वयं कीचड़ में धंसना नहीं चाहता था। फिर गाड़ी बाहर कैसे निकले।

गाड़ीवान उसे में बैठकर जोर-जोर से हनुमान चालीसा का पाठ करने लगा। उसका अभिप्राय था कि हनुमान जी आयें और गाड़ी खींचकर बाहर निकालें। 

पाठ करते बहुत देर हो गई। पर हनुमान जी नहीं आयें। वह झल्लाने लगा और बुरे-भले शब्द कहने लगा।

एक किसान पास के खेत में हल जोत रहा था। उसने यह तमाशा देखा और बोला, मूर्ख, हनुमान जी तो अनदेखे पर्वत को उखाड़ लाए थे। तू उनका भक्त बनता है तो कीचड़ में उतर कर पहियों जोर क्यों नहीं लगाता ताकि धकेले जाने पर वे आगे बढ़े। हनुमान जी समुद्र में कूद पड़े थे तुझसे कीचड़ में भी नहीं उतरा जाता।

अन्धविश्वासी भक्त को चेत हुआ। उसने अपनी गलती समझी। कीचड़ में उतरा पहियों को जोर लगाया। गाड़ी आगे चली और कीचड़ से पार हो गई। जो काम अपने पुरुषार्थ से हो सकता है उसके लिए आलसी बन कर देवता को क्यों पुकारा जाय?


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