संत एकनाथ हरिद्वार से काँवर में जल भर कर रामेश्वर पर चढ़ाने के लिए लम्बी यात्रा पर निकले। दो महीनों में पूरी होने वाली थी।
रास्ते में एक रेगिस्तान मिला। दूर-दूर तक पानी नहीं था। संत ने देखा कि एक गधा प्यास से व्याकुल होकर जमीन पर गिरा है और प्यास से तड़पकर प्राण देने के निकट जा पहुँचा हैं। वह पैर पीट रहा था।
संत को दया आईं उनने गंगा जल की काँवर में से एक घड़ा जल निकाला और उसे गधे के मुँह में डाल दिया। गधा होश में आया। आँखें खोली और कहा - इतनी कृपा की है तो दूसरों घड़ा भी मुझे पिला दीजिए। एक घड़े से प्यास बुझी नहीं और मैं चलकर इस जंगल से निकल जाने योग्य हुआ नहीं।
संत ने दूसरा घड़ा गंगा जल भी गधे के मुँह में उड़ेल दिया। उसने संतोष की साँस ली खड़ा हो गया ओर चलने का उपक्रम करने लगा।
धन्यवाद देने के लिए गधा संत के निकट पहुँचा और उनसे गले मिलने की अभिलाषा व्यक्त करने लगा। संत को आश्चर्य हुआ और वे गधे के गले मिलने में अपवित्रता के भय से आना कानी करने लगे।
गधे ने कहा - असमंजस में न पड़े। मैं रामेश्वर हूँ। इस स्थान पर इसलिए वेश बदल कर पड़ा था कि मेरे ऊपर गंगा जल चढ़ाने वालों में कोई सच्चे हृदय संत हों तो उनके दर्शन करके अपने को धन्य कर लिया और कृतार्थ हो गया। वे वहीं से घर वापस लौट गये।
समझा गया कि दुखियों की सहायता में सच्ची भगवद् भक्ति सन्निहित है।