र्जनों को आश्रय तो न देते (Kahani)

August 1988

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छोटे से विषैले कीड़े ने आम्र वृक्ष से अनुरोध किया कि उसे अपने आश्रय में जीवन यापन करने की आज्ञा दी जाय। उदार वृक्ष ने अपनी सहजशीलता से प्रेरित होकर वैसा करने की छूट दे दी।

कीड़े ने वंशवृद्धि आरंभ कर दी। देखते-देखते वे असीम संख्या में बढ़ गये। उन्होंने फल फूल और पत्तों पर अड्डा जमाया और वृक्ष की समूची उपयोगिता हरीतिमा और शोभा को समाप्त कर दिया।

साथ वाले दूसरे वृक्ष ने उपहास करते हुए कहा कि आप सज्जन रहते पर उसका अतिवाद अपना कर दुर्जनों को आश्रय तो न देते।


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