तपस्वी जावाति को स्वर्ग लोक मिला। देवता उन्हें विमान पर बिठाकर ले गये।
आत्मा ने समूचे स्वर्ग का निरीक्षण किया। वहाँ पर न ज्ञान वृद्धि का अवसर था और न सेवा साधन का। मात्र विलास सामग्री का उपभोग ही वहाँ के लोग करते थे।
जावाति ने देवताओं से अनुरोध किया उन्हें वापस धरती पर भेज दिया जाय। वहाँ पर सही पुरुषार्थ करने वालों को आत्मसंतोष मिलता है। उसका तो कोई अवसर ही यहाँ नहीं है।
देवता सुविधा और विलासताओं का आकर्षण दिखाते रहे पर तपस्वी ने उनमें कोई रुची नहीं दिखाई। आग्रह की अधिकता देखकर उन्हें पुनः पृथ्वी पर भेजना पड़ा। वे वहाँ रहकर प्रसन्नता पूर्वक अपना निर्धारित कृत्य करने लगे।