व्यवहार में सदाशयता (Kahani)

August 1988

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एक सेठ जी लक्ष्मी के बड़े भक्त थे। उनकी  पूजा अर्चना करते थे। लक्ष्मी जी भी प्रसन्न थी। उनके घर में किसी बात की कमी न थी। भरा-पूरा घर था।

एक रात लक्ष्मी जी ने उन्हें सपना दिया कि अब तुम्हारे पुण्य समाप्त हो गये। इसलिए हम विदा ले रही हैं। अब धन दौलत भी चली जायगी। सेठ जी पहले तो अनुनय विनय करते रहे पर जब लक्ष्मी जी किसी भी प्रकार रुकने को तैयार न हुई तो उनने एक प्रार्थना की कि इतनी सी कृपा का वरदान दे जाइए कि घर के सब लोग मिलजुलकर रहें और मेहनत तथा ईमानदारी कभी न छोड़े। लक्ष्मी जी तथास्तु कहकर विदा हो गई।

गरीबी बढ़ती गई पर घर के सब लोग दूनी हिम्मत के साथ कठिन दिनों का सामना करते रहे। उनने प्रेम सहयोग में और भी अधिक बढ़ोतरी की। दिन भर कड़ी मेहनत करते और नीयत में बेईमानी का प्रवेश न होने देते। इसी प्रकार कई वर्ष बीत गये।

एक रात सेठ जी को सपने में फिर लक्ष्मी जी ने दर्शन दिया और कहा-तुम लोगों के आचरण को देखकर मेरी खुशी का ठिकाना नहीं। अब मैं फिर वापस आ रही हूँ। कल से ही गरीबी चले जाने का बनग बन जायगा।

दूसरे दिन सवेरे सेठ जी ने रात वाला सपना सुनाया और कहा- जहाँ पारस्परिक व्यवहार में सदाशयता का समावेश रहता है वहाँ लक्ष्मी को रहना ही पड़ता है।


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