बापू आनन्द भवन में ठहरे थे। प्रातः कुल्ला करने का समय बातचीत के लिए सुविधाजनक देखकर पं. जवाहर लाल नेहरू पानी लेकर स्वयं आए। बात-चीत में पूरा पानी खर्च हो गया। नया मंगाना पड़ा। बापू खिन्न हो रहे थे। पं. नेहरू ने कारण पूछा तो उनने कहा- ‘ध्यान न रहने से अधिक पानी खर्च हो गया।’
नेहरू जी हँसे और बोले- ‘यह गंगा यमुना का नगर है। आप थोड़े अधिक पानी खर्च कर लें तो भी हर्ज नहीं।’ बापू ने कहा- “गंगा यमुना मेरे ही लिए तो नहीं बनी हैं। हर व्यक्ति को सुविधाओं का उपयोग करते समय मितव्ययिता का ध्यान रखना चाहिए। “यह समष्टिवादी दृष्टिकोण अपनाकर ही हमें सबका ध्यान रखना है, तभी हम लोकहित की साधना कर सकते हैं।”