एक अन्धा भीख माँगा करता था। जो पाई पैसे मिल जाते उसी से अपनी गुजर करता। एक दिन एक धनी उधर से निकला। उसे अंधे के फटे हाल पर बहुत दया आई और उसने पाँच रुपये का नोट उसके हाथ पर रखकर आगे की राह ली।
उन दिनों नोटों का चलन शुरू ही हुआ था। अन्धे को उनके सम्बन्ध में जानकारी न थी। उसने कागज को टटोल-टटोल कर देखा और समझा कि किसी ने ठठोली की है और उस नोट को खिन्न मन से जमीन पर फेंक दिया।
एक सज्जन पुरुष यह सब देख रहे थे। उनने नोट को उठाकर अन्धे को दिया और बताया यह तो पाँच रुपये का है। तब वह प्रसन्न हुआ और उससे भोजन वस्त्र खरीदकर अपनी आवश्यकतायें पूरी कीं।
ज्ञान चक्षुओं के अभाव में हम भी परमात्मा के अपार दान को देख और समझ नहीं पाते और सदा यही कहते रहते हैं कि हमारे पास कुछ नहीं, हमें कुछ नहीं मिला, हम साधनहीन हैं। पर यदि हमें जो नहीं मिला है उसकी शिकायत करना छोड़कर जो मिला है, उसी की महत्ता को समझें तो मालूम पड़ेगा कि जो कुछ मिला हुआ है वह भी कम नहीं है।