विदेशों में पुनर्जन्म मान्यता

May 1986

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सामान्यतया यह कहा जाता है कि ईसाई और मुसलमान धर्मों में पुनर्जन्म की मान्यता नहीं है, पर उनके धर्मग्रन्थों एवं मान्यताओं पर बारीक दृष्टि डालने से प्रतीत होता है कि प्रकारान्तर से वे भी पुनर्जन्म की वास्तविकता को मान्यता देते हैं और परोक्ष रूप से उसे स्वीकार करते हैं।

प्रो. मैक्समूलर ने अपने ग्रन्थ “सिक्स सिस्टम्स ऑफ इण्डियन फिलासफी” में ऐसे अनेक आधार एवं उद्धरण प्रस्तुत किये हैं जो बताते हैं कि ईसाई धर्म पुनर्जन्म की आस्था से सर्वथा मुक्त नहीं है। प्लेटो और पैथागोरस के दार्शनिक ग्रन्थों में इस मान्यता को स्वीकारा गया है। जोजेक्स ने अपनी पुस्तक में उन यहूदी सेनापतियों का हवाला दिया है जो अपने सैनिकों को मरने के बाद भी फिर पृथ्वी पर जन्म मिलने का आश्वासन देकर उत्साहपूर्वक लड़ने के लिए उभारते थे। “विजडम ऑफ सोलेमन” ग्रन्थ में महाप्रभु ईसा के वे कथन उद्धत हैं जिसमें उनने पुनर्जन्म का प्रतिपादन किया है। उन्होंने अपने शिष्यों से एक दिन कहा था- “पिछले जन्म का एलिजा ही अबजान बैपटिस्ट के रूप में जन्मा था।” बाइविल के चैप्टर 3 पैरा 3-7 में ईसा कहते हैं- मेरे इस कथन पर आश्चर्य मत करो कि तुम्हें निश्चित रूप से पुनर्जन्म लेना पड़ेगा। ईसाई धर्म के प्राचीन आचार्य फादर ओरिजिन कहते थे- “प्रत्येक मनुष्य को अपने पूर्वजन्मों के कर्मों के अनुसार अगला जन्म धारण करना पड़ता है।”

दार्शनिक गेटे, फिशर, शोलिंग, लेसिंग आदि ने पुनर्जन्म का प्रतिपादन किया है। अंग्रेज दार्शनिक ह्यूम तो किसी दार्शनिक को तात्विक दृष्टि की गहराई इस बात से परखते थे कि वह पुनर्जन्म को मान्यता देता है या नहीं।

सूफी सन्त, मौलाना रूम ने लिखा है, मैं पेड़-पौधे, कीट-पतंग, पशु-पक्षियों में योनियों में होकर मनुष्य वर्ग में प्रवेश हुआ हूँ और अब देव वर्ग में स्थान प्राप्त करने की तैयारी कर रहा हूँ।’

इन्साइक्लोपीडिया ऑफ रिलीजन एण्ड एथिक्स के बारहवें खण्ड में अफ्रीका, आस्ट्रेलिया और अमेरिका के आदिवासियों के सम्बन्ध में यह अभिलेख है कि वे सभी समान रूप से पुनर्जन्म को मानते हैं। मरने से लेकर जन्मने तक की विधि-व्यवस्था में मतभेद होते हुए भी यह कहा जा सकता है कि इन महाद्वीपों कि आदिवासी आत्मा की सत्ता को मानते हैं और पुनर्जन्म पर विश्वास करते हैं।

थियासॉफी के जन्मदाताओं में से एक सर ओलिवर लाँज ने लिखा है- “जीवित ओर मृत भेद स्थूल जगत तक ही सीमित है। सूक्ष्म जगत में सभी जीवित हैं। मरने के बाद आत्मा का अस्तित्व समाप्त नहीं हो जाता। जिस प्रकार हम जीवित लोग परस्पर विचार विनियम करते हैं, उसी प्रकार जीवित और मृतकों के बीच में आदान-प्रदान हो सकना सम्भव है। हमें विज्ञान के इस नये क्षेत्र में प्रवेश करना चाहिए और एक ऐसी दुनिया के साथ संपर्क बनाना चाहिए। इससे हम मानवी परिवार को कहीं अधिक सुविस्तृत, सुखी और प्रगतिशील बना सकेंगे।

सर आर्थर कानन डायल भी इसी विचार के थे। वे कहते थे अपनी दुनिया की ही तरह एक और सचेतन दुनिया है, जिसके निवासी न केवल हमसे अधिक बुद्धिमान हैं वरन् शुभ-चिन्तक भी हैं। इन दोनों संसारों के बीच यदि आदान-प्रदान का मार्ग खुल सके तो इसमें स्नेह-सम्वेदनाओं का सुखद सहयोग का एक नया अध्याय प्रारम्भ होगा। मृतकों और जीवितों के बीच संपर्क स्थापना का प्रयास यदि अधिक सच्चे मन से किया जा सके तो अब तक की प्राप्त वैज्ञानिक उपलब्धियों से कम नहीं वरन् बड़ी सफलता ही मानी जायेगी तथा यह भारतीय प्रतिपादन पुष्ट हो जाएगा कि जन्म और मृत्यु मात्र स्थूल जगत की घटनाऐं हैं। “आत्मा न कभी जन्म लेती है न मरती है” वाली गीताकार की उक्ति तब विज्ञान सम्मत लगेगी।

वाक्रले, कैलीफोर्निया (अमेरिका) में कार्यरत डॉ. सनेला और उनके साथियों ने इस विषय पर न केवल खोज की है, बल्कि “साइकोसिस एण्ड ट्रान्सेन्डेन्स” शीर्षक एक लेख में “द रिवर्थ प्रॉसेस” की गहरी छानबीन व दस्तावेजों से भरी व्याख्या भी प्रस्तुत की है।

डॉ. सनेला के समूह ने शीजोफ्रोनिया, मेनिअक, डिप्रेशन तथा मानसिक असन्तुलनजन्य अन्य रोगों के रोगानुसन्धानों का विवरण देते हुए यह तथ्य प्रदर्शित किया है कि उनमें से अधिकाँश उच्चत्तर मानसिक विकास की प्रक्रिया वाले वे लोग हैं, जो विराट आन्तरिक शक्तियों के अपरिपक्व तथा असन्तुलित प्रस्फुटन के कारण इस स्थिति में पहुँचे हैं। सनेला- समूह के अनुसार विकास की यह स्थिति वस्तुतः मानसिक रोग नहीं है बल्कि ‘पुनर्जन्म प्रक्रिया’ की ओर यह गति मात्र है।

तुर्की के अदना क्षेत्र में जन्मा इस्माइल नामक बालक जब डेढ़ वर्ष का था तभी वह अपने पूर्व जन्म की बातें सुनाते हुए कहता- मेरा नाम अवीत सुजुल्मस है। अपने सिर पर बने एक निशान को देखकर बताया करता कि इस जगह चोट मारकर मेरी हत्या की गई थी। जब बालक पाँच वर्ष का हुआ और अपने पुराने गाँव जाने का अधिक आग्रह करने लगा तो घर वाले इस शर्त पर रजामन्द हुए कि वह आगे-आगे चले और उस गाँव का रास्ता बिना किसी से पूछे स्वयं बताये। लड़का खुशी-खुशी चला गया और सबसे पहले अपनी कब्र पर पहुँचा। पीछे उसने अपनी पत्नी हातिश को पहचाना और प्यार किया। इसके बाद उसके एक आइसक्रीम बेचने वाले मुहम्मद को पहचाना और कहा तुम पहले तरबूज बेचते थे और मेरे इतने पैसे तुम पर उधार हैं। मोहम्मद ने वह बात मंजूर की और बदले में उसे बर्फ खिलाई। ऐसी अनेकों बातें इस छोटे बालक ने बताई जो पूछताछ करने पर सही निकलीं।

लेवनान के कारनाइल नगर से 67 किलोमीटर दूर खरेबी गाँव के एक अहमद नामक लड़के ने कुछ बड़ा होते ही अपने पूर्वजन्म के अनेक विवरण बताये जिसमें ट्रक दुर्घटना, पैरों का खराब होना, प्रेमिका से विफलता, भाई का चित्र, बहिन का नाम आदि के वे संदर्भ प्रकाश में आये जिनसे बालक का पूर्व परिचित होना सम्भव न था। बालक ड्रूज वंश का- इस्लाम धर्मावलम्बी था। आमतौर से उस वातावरण में पुनर्जन्म की मान्यता नहीं है तो भी इस घटना ने सभी को इस पर पुनर्विचार के लिए विवश कर दिया।

परामनोवैज्ञानिक मेयर ने अपनी पुस्तक “ह्यूमन पर्सनालिटी” में अमरीका की पेन्सिलवानिया यूनिवर्सिटी में असीरियन- सभ्यता के विशेषज्ञ प्राध्यापक हिल प्रेचट द्वारा वेबीलोनिया- साम्राज्य की एक मणि पर खुदे अक्षरों को सहसा पुनर्जन्म की स्मृति से पढ़ लेने का वर्णन किया है। इन प्राध्यापक को उस लिपि व भाषा का ज्ञान नहीं था। अकस्मात् दिवा स्वप्न की तरह उनके दिमाग में वह अर्थ कौंध गया, जो बाद में उस लिपि के विशेषज्ञों द्वारा सही बताया गया। इससे यह अनुमान किया गया कि वे प्राध्यापक पूर्वजन्म में असीरियाई नागरिक थे और उसका संस्कार इतना गहरा था कि अमरीका में जन्म लेने पर भी सतत् उन पर छाया रहा।

इन विभिन्न घटनाओं के सम्बन्ध में जो विवरण प्राप्त हुए हैं, तथ्य सामने आये हैं, उन्होंने पुनर्जन्म और परलोक के भारतीय सिद्धांत की पुष्टि करते हुए यह भी प्रामाणित कर दिया है कि मरने के बाद शरीर तो छुट जाता है पर मनुष्य की चेतना जीवित ही रहती है। अभी कुछ ही समय पूर्व विश्व-विख्यात ब्रिटिश परामनोवैज्ञानिक जे. बर्नार्ड हट्टन ने कुछ ऐसी घटनाओं पर शोध की है, जो यह सिद्ध करती है कि व्यक्ति ही नहीं घटनाओं का भी पुनर्जन्म होता है। इस विषय को इन्होंने अपनी पुस्तक ‘द अदर साइड ऑफ रियेलिटी’ में प्रमाणों और तथ्यों के आधार पर प्रतिपादित किया


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