अरस्तू के पास सिकन्दर पढ़ा करता था। न केवल पुस्तकें वरन् आत्मिक प्रगति एवं व्यावहारिक जीवन का नीति विज्ञान भी।
सिकन्दर एक युवती के फेर में पड़ गया और पढ़ने आने का समय वह उसी जंगल में खर्च करने लगा। इन्द्रिय शक्ति तो नष्ट होने ही लगी, भावी प्रतिभा को क्रमशः जंग लगने लगी। अरस्तू तक भेद पहुंच ही गया। उनने एक तरकीब खोज निकाली ताकि पानी सिर से ऊपर निकलने के पहले ही सुधार किया जा सके।
वे उस युवती के घर मौका पाकर जा पहुँचे और अपनी साठ-गाँठ जमाने लगे। युवती मन ही मन बुड्ढ़े की शौकीनी पर हँसी और कहा- ‘आज दिन भर के लिए आप मेरे घोड़ा बन जाइए दिन भर सवारी करूंगी। रात को आपकी इच्छा पूरी कर दूँगी।’ अरस्तू घोड़ा बन गये और युवती उन्हें हाँकती हुई कोड़े जमाने लगी।
सिकन्दर कोने में छिपे यह सब देख रहे थे। अरस्तू ने अब अपना अनजानपन छोड़कर कहा- बेवकूफ जिस रास्ते पर चलने से मेरे जैसे समझदार की यह दुर्गति हो रही है। उस पर चलने से तुझ जैसे कम अक्ल को क्या भुगतना पड़ सकता है। जरा सोच तो। सिकन्दर की आँखें खुल गईं उसने अपना रास्ता बदल दिया। इसी ने उसे सिकन्दर महान बनाया।